माखन वंश का शिक्षा प्रेम

 माखन वंश का शिक्षा प्रेम

प्रो बंशीलाल 

    शिवरीनारायण के माखन वंश की शिक्षा के प्रति रूझान इस बात से पता चलता है कि इस वंश के मालगुजार स्व. आत्माराम साव ने अपने कुलदेव महेश्वर महादेव मंदिर परिसर में लगभग 1920 के दशक में एक संस्कृत पाठशाला खुलवाकर इलाहाबाद से संस्कृत के आचार्य पंडित रामचंद्र चतुर्वेदी के पिता जी को बुलवाकर न केवल अपने वंश के बच्चों को बल्कि नगर के प्रतिभाशाली बच्चों को पढ़ाई का एक अच्छा माहौल तैयार करवाया था। इस संस्कृत पाठशाला में सूरजदीन साव, विद्याधर साव, इच्छाराम साव, मन्नाराम साव, धन्नाराम साव, साधराम साव, लक्ष्मीप्रसाद साव, राघवसाव, मुरितराम साव, पंडित कौशलप्रसाद द्विवेदी, आदि अनेक लोगों ने शिक्षा ग्रहण की। इसी प्रकार शासन की मंशानुरूप उन्होंने सन् 1935 में यहां एक मिडिल स्कूल खुलवाकर उसके लिए अपने दादा जी स्व. माखन साव की स्मृति में एक भवन 06.05.1935 को समर्पित किया था। इस भवन में आज शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल लगता है। इसी प्रकार स्वतंत्रता प्राप्ति के 15 वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ में शिक्षा की क्या स्थिति रही होगी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उस समय कालेज पढ़ने के लिए नागपुर, आगरा, कलकत्ता, इलाहाबाद, लखनऊ और बनारस आदि नगरों में जाना पड़ता था। इसके बावजूद सन 1940 के दशक में इस वंश के श्री तुमागम प्रसाद, श्री गोपाल प्रसाद, श्री कमलाप्रसाद, श्री कौशलप्रसाद, श्री जगदीश प्रसाद, श्री गौटियाराम को पढ़ने कि लिए बिलासपुर आये। यहां उनके रहने के लिए जूना बिलासपुर में एक मकान खरीदा गया और उनके लिए खाना बनाने और देखरेख के लिए नौकर आदि रखे गये थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें नागपुर, कलकत्ता, इलाहाबाद, बनारस और लखनऊ में भेजा गया था। उच्च शिक्षा ग्रहण करके ये सभी शासकीय पदों को सुशोभित कर सेवानिवृत हुए। श्री कमलाप्रसाद और श्री कौशलप्रसाद दक्षिण पूर्वी रेल्वे से सेवानिवृत होकर गोलोकवासी हुए। श्री तुमागमप्रसाद इस वंश के अंतिम मालगुजार हैं। वे हायर सेकंडरी स्कूल के प्राचार्य पद से सेवानिवृत होकर बिलासपुर में निवास कर रहे हैं। लखनऊ से अपनी उच्च शिक्षा पूरी करके पहले वे सारंगढ़ में केशरवानी समाज के द्वारा संचालित ट्रांसपोर्ट कंपनी में मैनेजर बने लेकिन ट्रांसपोर्ट कंपनी ज्यादा दिन नहीं चली और बंद हो गयी जिसके कारण वे अपने नौकरी के लिए नागपुर चले गए जहां वे बहुत दिन रहे लेकिन अंत में वे छत्तीसगढ़ आ गए और स्कूल विभाग में व्याख्याता नियुक्त हो गए। उन्हें हिन्दी, मराठी, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और बंगाली भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान है और इन भाषाओं को वे फर्राटे से बोलते हैं। श्री जगदीशप्रसाद और श्री गौटियाराम दोनों सगे भाई हैं और दोनों लीडिंग प्रेक्टिशनर रहे हैं। इस क्षेत्र में दोनों भाइयों ने खूब यश कमाया। श्री जगदीशप्रसाद गोलोकवासी हो चुके हैं लेकिन श्री गौटियाराम जी अपना प्रेक्टिश बंद कर दिये हैं और उनके चिरंजीव श्री अजय केशरवानी और क्रांति केशरवानी क्रमशः जांजगीर और पामगढ़ में प्रेक्टिश कर रहे हैं। श्री तुमागम प्रसाद के एक मात्र सुपुत्र रविन्द्र कुमार एक उत्कृष्ट आर्किटेक्ट हैं और बिलासपुर में निवास करते हैं। श्री जगदीश प्रसाद के सभी सुपुत्र बिलासपुर में निवास कर रहे हैं लेकिन चंद्रकुमार ही उनकी विरासत को अपना सके और वे बिलासपुर में हाई कोर्ट अधिवक्ता हैं। इसी प्रकार श्री कौशलप्रसाद के दोनों सुपुत्र बिलासपुर में निवास कर रहें हैं।

इसी प्रकार सन् 1950 के दशक में इस वंश के लगभग डेढ़ दर्जन बच्चे स्कूली शिक्षा के लिए बिलासपुर आये। इनमें श्री शोभाराम, श्री पराऊराम, श्री देवालाल, श्री शंकरलाल, श्री बंशीलाल, श्री परमेश्वर लाल, श्री मोतीलाल, श्री प्यारेलाल, श्री अम्बिकाप्रसाद, श्री रामेश्वरप्रसाद, श्री गणेशप्रसाद, श्री भीमप्रसाद, श्री गोरेलाल, श्री सेवकलाल, श्री बाबुलाल, श्री ईश्वर प्रसाद, श्री शिवदत्त, श्री रामस्वरूप, श्री नरसिंह प्रसाद प्रमुख थे। अधिक बच्चों के रहने के लिए जूना बिलासपुर का घर छोटा पड़ने लगा तब गोड़पारा में गुरूद्वारा के पास एक दूसरा मकान खरीदा गया। यहां भी उनके रहने, खाने आदि की व्यवस्था के लिए रसोइया और नौकर आदि की व्यवस्था की गयी। चूंकि उस समय बिलासपुर में लाइट की कोई व्यवस्था नहीं थी, केवल लालटेन ही एक मात्र साधन था। सभी लालटेन के सहारे पढ़ाई करते थे। सबका पढ़ने और खाने का समय निर्धारित था। सब एक साथ पढ़ते, एक साथ खाते और एक साथ सोते थे। कभी रसोइया नहीं आया या कामवाली बाई नहीं आई तो हम सब मिलकर काम कर लेते थे। तब न कोई झिझक होता था न संकोच। सामूहिक जिंदगी का एक अलग ही आनंद था। आज भी हम सब एक साथ मिलते हैं तो बचपन की बात को स्मरण करके आनंदित हो उठते हैं। 

पहले हाई स्कूल और फिर कालेज की पढाई करके हम सब लगभग 1960-62 के मध्य शासकीय सेवा में आ गये। श्री शोभाराम और श्री पराऊराम खाद्य निरीक्षक पद पर आसीन हुए, श्री शंकरलाल और  श्री बंशीलाल क्रमशः शासकीय इंजीनियरिंग और सी. एम. डी. महाविद्यालय में व्याख्याता बने, श्री मोतीलाल तहसील सेवा में आ गये, श्री परमेश्वर और श्री ईश्वर प्रसाद भोपाल में भेल कंपनी में लग गए, श्री गणेशप्रसाद और श्री सेवकलाल बैंकिंग सेवा में आ गए, श्री रामेश्वर प्रसाद स्कूल शिक्षा में आ गए, श्री गोरेलाल चकबंदी इंस्पेक्टर बने, श्री शिवदत्त पी. एच. ई. में और श्री रामस्वरूप इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके भिलाई इस्पात संयंत्र में नियुक्त हो गए। इस प्रकार अधिकांश बच्चे पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने लगे और शेष बच्चे घर की जिम्मेदारी सम्हाल लिए।

    कुछ बच्चे पढ़ने के लिए सारंगढ़ चले गए। इनमें विसंभर प्रसाद, विसेसर प्रसाद और दिनेश प्रसाद प्रमुख थे। कुछ जांजगीर और बिलासपुर में पढे़ जिनमें श्री रतनलाल, रामलाल, महेशप्रसाद, अजय कुमार, क्रांति कुमार, जागेश्वर और भुवनेश्वर प्रसाद प्रमुख थे। 1975 से 78 के बीच हमारे परिवार के कुछ अन्य बच्चे उच्च शिक्षा के लिए बिलासपुर आये। इनमें क्रांति कुमार, अश्विनी कुमार, रविन्द्र कुमार, राकेश कुमार, आशीष कुमार, अरविंद कुमार आदि प्रमुख थे। शासकीय सेवारत लोगों के बच्चे शहरों में ही रहकर उच्च अध्ययन करने लगे। तब पहले जैसा माहौल नहीं था-अपने बच्चों को पढ़ाई अपने खर्च पर कराना पड़ता था। फिर भी सभी बच्चे अपनी उच्च अध्ययन पूरा करके कुछ शासकीय सेवा में, कुछ प्राइवेट नौकरी में और कुछ व्यवसाय में संलग्न हो गए हैं। रविन्द्र और राकेश कुमार म.प्र.वि.मं. की सेवा में लगे तो अश्विनी शासकीय काॅलेज ज्वाइन किया। आशीष, अरविंद दोनों व्यवसाय में लग गए। इन सबके बावजूद सभी बच्चे परिवार के संस्कार से संस्कारित हैं।

हमारे बैच के सभी लोग अपनी सेवाएं पूरी करके बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, भिलाई, जांजगीर और दिल्ली आदि में सेवानिवृत्त होकर अपना स्वयं का निवास बनाकर निवास कर रहे हैं। हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर, उनकी शादी कराकर जीवन की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए हैं। हमारे बच्चे भी कुछ सेवारत हैं और कुछ व्यापार में संलग्न हैं। हम अपने जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों के साथ आज भी सब मिलकर जीवन का आनंद ले रहे हैं। हमारा समूचा परिवार उस महात्मा माखन साव, इस वंश के संस्कार तथा दूरदर्शिता के ऋणी हैं जिसके कारण हम इस योग्य बन सके हैं। हम दूर-दूर रहकर भी एक-दूसरे से जुड़े रहे और यही कारण है कि हमारे परिवार के हर सुख-दुख के आमंत्रण पत्र में ‘माखन साव परिवार‘ लिखकर एकता का प्रदर्शन कर हम गौरवान्वित होते हैं।



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