लखुर्री के लम्बरदार साधराम रामचंद्र साव

 लखुर्री के लंबरदार साधराम रामचंद्र साव

साधराम साव 
छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित पूर्व मालगुजार स्व. श्री माखन साव और उनके परिवार के बारे में अन्यान्य किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनके घर में जहां महेश्वर महादेव की विशेष कृपा है, वहीं लक्ष्मी जी सदा निवास करती हैं। आज उनके वंश में बारहवीं पीढ़ी के बच्चे हैं। परिवार में दान-मान, पूजा-पाठ और सर्वजन हिताय के कार्यो में अग्रणी होने के कारण ही सदा सम्मानित रहे। परिवार का सदर मुख्यालय शिवरीनारायण में था। यहां की के मालगुजार और पुजारी पंडित भगीरथ भोगहा ने अपने पुत्र बालाराम भोगहा के सहयोग से श्री मयाराम साव को यहां रहने के लिये जमीन उपलब्ध कराया, और इस प्रकार उनका परिवार हसुवा से शिवरीनारायण आ गया। यहां की हवेली में पूरा परिवार रहता था। परिवार बढ़ने पर परिवार बढ़ने लगा तब यहां एक नया घर का निर्माण कराकर परिवार के लंबरदार परिवार रहने लगा। बड़े बुजुर्ग लोग गांवों में खेती किसानी का कार्य देखने लगे और शिवरीनारायण से ही आना जाना करने लगे। फिर अनेक बाड़ा का निर्माण कराया गया जहां बुजुर्ग पुरूषों के रहने और सोने की व्यवस्था की गई। गर्मी में परिवार के बच्चों का विवाह  एक ही मंडप में किया जाने लगा। लगभग प्रतिवर्ष बच्चों का विवाह यहां होता था। परिवार में सामूहिक विवाह ही होता था। शिवरीनारायण के महेश्वर महादेव के प्रतिरूप स्वरूप हसुवा में छुहिया तालाब के तट पर श्री बैजनाथ साव ने, लखुर्री में परघिया साव ने जहां महेश्वर महादेव की स्थापना करायी वहीं झुमका में श्री बहोरन साव और शिवरीनारायण में परघिया साव ने बजरंगबली का भव्य मंदिर बनवाया। महेश्वर महादेव की ही कृपा से माखन साव परिवार आज विशाल वट वृक्ष बन गया है। छत्तीसगढ़ में केशरवानी वैश्य परिवारों को ‘‘साव’’ और ‘‘दाऊ’’ से सम्बोधित किया जाता था जो आज भी यहां प्रचलित है। 
लखुर्री की हवेली 

माखन साव जब तक जीवित रहे, परिवार के वे अकेले लंबरदार रहे। फाल्गुन सुदि 2,संवत् 1949 को उनकी 80 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गयी और परिवार की जिम्मेदारी उनके ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते श्री खेदूराम साव के उपर आ गयी। उन्होंने भी अपने पिता जी की परंपरा का निर्वाह किया। इसी बीच आयकर से बचने के लिये उन्होंने चार लंबरदारी बनायी जिसके अनुसार श्री बैजनाथ साव को हसुवा, श्री सुखरू साव और अंडोल साव साव को टाटा-झुमका-सीतलपुर-बछौडीह, श्री सिदारसिंह साव को लखुर्री और श्री बुल्लुराम साव को कमरीद की जिम्मेदारी दी। पूरे परिवार की लंबरदारी खेदूराम गनपत बलभद्र साव के नाम से चलती थी। 22.11.1912 को श्री खेदूराम साव की मृत्यु हो गयी जिसके कारण उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री आत्माराम साव लंबरदार हुआ। इस प्रकार लंबरदारी आत्माराम-गनपतसाव-बलभद्रसाव के नाम से चलने लगी। सन् 1922 में गनपत साव की मृत्यु हो गयी। चंूकि उनका कोई पुत्र नहीं था अतः लंबरदारी में आत्माराम-बलभद्रसाव के नाम से चलने लगी। 13.4.1926 को बलभद्र साव की मृत्यु हो गयी। उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री कृपाराम के अस्वस्थ रहने और द्वितीय पुत्र को हसुवा की जिम्मेदारी सौंपे जाने के कारण श्री सूरजदीन साव को घर की लंबरदारी दी गयी। इस प्रकार लंबरदारी आत्माराम-सूरजदीनसाव के नाम से चलने लगी। सन् 1947 में आत्माराम साव की मृत्यु हो गयी तब लंबरदारी श्याम मनोहर-सूरजदीन साव के नाम से चलती रही। 

लखुर्री हवेली ,रामचंद्र साव 
माखनसाव परिवार की शाखा शिवरीनारायण के अलावा हसुवा, टाटा, लखुर्री, भादा और कमरीद में रहने लगी। दक्षिण-पूर्वी रेल्वे के चाम्पा जंक्शन से 17 कि.मी. पर बम्हनीडीह ब्लाक मुख्यालय है। यहां से 5 कि.मी. की दूरी पर प्राचीन गढ़ी लखुर्री है जहां श्री सरधाराम साव का परिवार रहता है। सरधा राम साव के दो पुत्र क्रमशः श्री शोभाराम और श्री ठुठुवा साव हुए। शोभाराम साव के दो पुत्र श्री रामसिंह और परघिया साव हुवे। रामसिंह के एक ही पुत्र बनाऊ साव हुवे जिनका कोई बच्चा नहीं हुवा। परघिया साव के दो पुत्र श्री साधराम और साखीराम और एक  पुत्री पूना बाई हुई। इसी प्रकार ठुठुवा साव के एक मात्र पुत्र दशरथ साव हुवे। दशरथसाव के तीन पुत्र क्रमशः श्री रामचंद्र, श्री देवचरण और श्री चमरू साव हुवे। यहां परघिया साव दशरथ साव के नाम पर मालगुजारी चलती थी। बुजुर्गों की मृत्यु हो जाने पर साधराम रामचंद्र साव के नाम पर मालगुजारी फर्म चलने लगा और खूब चला। माखन वंश में सर्वाधिक गांव खरीदने का श्रेय लखुर्री के साधराम रामचंद्र साव फर्म को जाता है।
रामचंद्र साव के पुत्र रामदयाल और अनसुईया देवी 

शिवरीनारायण के पवित्र और धार्मिक परिवार में चैत सुदि 13, संवत् 1969 को श्री साधराम साव का जन्म हुआ। यहीं उनका बचपन गुजरा और शिक्षा-दीक्षा हुई। ज्यादा दिन तक वे अपने पिता के वात्सल्य नहीं पा सके और बचपन में ही छोटे भाई साखीराम का बिछोह सहना पड़ा। लेकिन श्रीमती बुलाकी बाई जैसे धर्मपरायण जीवन संगीनी उनके जीवन को संवार दी। उनके ‘ज्येष्ठ पुत्र श्री शोभाराम को गांव पार कराने पर ही स्वास्थ्य लाभ होने की’ बात को चरितार्थ करते हुए उन्होंने अपना परिवार लखुर्री ले आया। तब से ही श्री साधराम साव का पूरा परिवार लखुर्री में रहने लगा। उन्होंने अपने चाचा श्री रामचंद्र साव के साथ यहां की मालगुजारी का कार्य सम्हाला और अनेक सद्कार्य किये। यहां के तालाब को अपने चाचा श्री रामचंद्र के नाम पर ‘‘रामचंद्र तालाब’’ नामकरण किया। एक प्राथमिक विद्यालय जो आज मिडिल स्कूल है, को खुलवाने के लिए जमीन दान में दी। इस स्कूल की शिक्षा समिति के वे कई वर्ष तक अध्यक्ष रहे। करनौद और चांपा रोड में सोंठी में एक-एक धर्मशाला का निर्माण कराया। आगे चलकर सन् 1962 में सोंठी का धर्मशाला और कुंआ युक्त आधा एकड़ की जमीन श्री सदाशिव गोविन्द कात्रे को कुष्ठ आश्रम खोलने के लिए दान में दे दी। आज भले ही सोंठी कुष्ठ आश्रम में 70-80 एकड़ जमीन हो मगर श्री साधराम साव के इस अवदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। इसीलिए कहा जाता है कि ‘दान वही श्रेष्ठ है जो उचित समय पर, उचित स्थान पर सत्पात्र को निःस्वार्थ भाव से दिया गया हो..’ पारिवारिक बटवारा सम्बंधी दीवानी केश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया और छोटे परिवार होने के कारण अन्य हिस्सेदारों को भी चल अचल सम्पत्ति में हिस्सा दिया। इसके लिए उन्हें परिवारजन हमेशा सम्मान देते रहे।

सोंठी कुष्ठ आश्रम में दान 

वे लखुर्री के अनेक वर्षो तक मुखिया रहे और यहां के विकास के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे। बम्हनीडीह से लखुर्री तक सड़क बनाने के लिए अपने परिवार की जमीन देने की स्वीकृति दी, मवेशी बाजार लगाना शुरू कराया जो आज बम्हनीडीह में लगता है। सन् 1950 में ट्रेक्टर खरीदकर सबसे पहले नई तकनीक से खेती करने और डीजल से चलने वाली आटा चक्की, हालर मिल, तेल मिल और आरा मशीन चलाकर यहां के विकास का मार्ग खोल दिया। अपने कुलदेव ‘‘महेश्वर महादेव’’ की पूजा-अर्चना वे नित्य करते थे। उनके तीनों पुत्र सर्वश्री शोभाराम केशरवानी फुड आफिसर के पद से सेवानिवृत्त हुवे, प्रो. शंकरलाल केशरवानी शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय बिलासपुर से सेवानिवृत्त होकर बिलासपुर में अपने औद्यौगिक प्रतिष्ठानों को सुपुत्र अशोक और अनिल के सहयोग से संचालित कर रहे हैं, और तीसरे पुत्र श्री ओंकार प्रसाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके लखुर्री में कृषि कार्य में संलग्न हैं। उन्होंने अपनी जीवन संगिनी श्रीमती बुलाकी देवी और शोभा-शंकर-ओंकार के भरे-पूरे परिवार को अपने शुभाषीश से पूरित करते हुवे 10 अक्टूबर सन् 1999 को बैकुंठधाम सिधार गये। ऐसे सद्पुरूष का वंशज होना हमारे लिए गौरव की बात है। उन्हें हमारा शत् शत् नमन्..।

आम का बगीचा ,लखुर्री 

महेश्वरनाथ महादेव मंदिर , लखुर्री 

रामचंद्र तालाब ,लखुर्री 




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