परिवारजनों के बीच जन्म दिन
ई प्रांजल कुमार |
पापा ने कहा कि "रायपुर में ही हमारे चाचा श्री मोतीलाल केशरवानी अश्वनी नगर में रहते हैं और उनके बड़े बेटा शिवम की शादी हो रही है। शादी में जाते नहीं बनेगा इसलिये वहां जाकर रसूम दे आना...।"
मैं शाम को वहां गया और कहा कि मैं प्रांजल केशरवानी हूँ , मैं प्रो. अश्विनी केशरवानी का बेटा हूँ , चांपा से आया हूँ । पापा मम्मी को आपके घर की विवाहोत्सव में आते नहीं बन रहा है इसलिये रसूम भिजवाये हैं, लिफाफा बढ़ाते हुए मैंने कहा।
घर में जिसे मैं लिफाफा दे रहा था, वह मुझे दुल्हे के पापा यानी श्री मोतीलाल जी के पास ले गया। मैं अपनी बात दुहराते हुए रसूम लेने की बात कही और जल्दी जाने की बात बतायी क्योंकि मेरी वापसी के लिए ट्रेन थी।
उन्होंने मुझे ध्यान से देखा और खुश होकर बड़े प्यार से मुझे अपने पास बिठाकर कहने लगे कि क्यों नहीं आ रहे हैं तुम्हारे पापा मम्मी? ऐसा करो, तुम रूक जाओं और अम्बिकापुर बारात चलेंगे, बड़ा मजा आयेगा? मुझे बड़ा संकोच हो रहा था और आश्चर्य भी हो रहा था कि मैं जिनसे कभी मिला नहीं, जिन्हें जानता तक नहीं उनसे इतना प्यार? लेकिन मैं यहां कैसे रूक सकता हूँ ? आज मेरा जन्म दिन है और चांपा में सभी मेरा इंतजार भी कर रहे हैं।
मैं बड़े संकोच से उन्हें आज अपने जन्म दिन की बात बतायी और जल्दी लौटने की बात कही। बाबा जी बड़े खुश हुये और कहने लगे कि "...अब तो तुम्हें नहीं जाने देंगे और यहीं तुम्हारा जन्म दिन भी मनायेंगे?" उन्होंने मुझसे कहा कि तुम अपने पापा से बात कराओ। चाचा जी ने पापा से मुझे रूकने और यहीं मेरा जन्म दिन मनाने की बात कही। पापा ने कहा ठीक है और मुझे यहां रूकने की बात समझायी। अब तो मैं रात्रि रूकने के लिए मजबूर था। धीरे धीरे वहां मैं अपना मन लगाया। श्री मोतीलाल बाबा जी मुझे बड़े प्यार से अपने भाई बहनों और रिश्तेदारों से मिलवाये। सभी मुझसे मिलकर बड़े खुश हुए।
रात्रि में मैंने देखा कि आज लेडिज संगीत कार्यक्रम है और रायपुर में रहने वाले परिवारजन आने लगे। बाबा जी उन सबसे मेरा परिचय कराया और आज मेरे जन्म दिन होने की बात उन्हें बतायी। अनन फानन में सब तैयारी की गई, केक मंगाया गया और उत्साह के साथ परिवारजनों के बीच मैंने केक काटकर अपना जन्म दिन मनाया। सबने मुझे प्यार से गिफ्ट भी दिया। मैंने देखा मेरी कविता मौसी मौसा जी, संगीता मौसी मौसा जी के साथ बहुत से लोग परिचित भी थे। मैंने खुशी खुशी अपना जन्म दिन यहां मनाया और लेडिज संगीत में हिस्सा लिया। आज मुझे अपने परिवारजनों से मिलने और उनसे अपनापन जो मिला था जिसका बखान करना मेरे लिये कल्पना से परे था। दूसरे दिन मैं उनसे विदा लेकर मधुर स्मृतियां लिये चांपा लौट आया। यह मेरा पहला अनुभव था परिवारजनों के बीच रहकर अपना जन्म दिन मनाना जिसमें मेरे पापा मम्मी और मित्रगण नहीं थे। यह मेरे लिये बड़ा सुखद अनुभव था।
इसी प्रकार 16 साल बाद पुनः ऐसा दूसरा अनुभव मुझे मेरे बेटे एकाक्ष के पहला जन्म दिन शिवरीनारायण में परिवारजनों के बीच मनाने का अवसर आया। 2016 में मैं अपने परिवार के साथ अमरीका से भारत आया था और चाम्पा मेरे बेटे का पहला जन्म दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाना था। उनका जन्म दिन 2015 में कुलदेव पूजन (कुलदेव पूजन और नवापानी खाने का दिन) हुआ था। यह भी संगोग था कि इसी दिन दशहरा भी था। इसे संयोग ही कहना चाहिये कि मैं अपने परिवार के साथ शिवरीनारायण में कुलदेव पूजन और नवापानी खाने गया था। इस बार मेरे साथ पापा मम्मी, दादी और छोटा भाई अंजल भी साथ था। बिलासपुर से संजय चाचा चाची और छोटे भाई बहन भी आये थे। बिलासपुर वाले श्री सेवकलाल बाबा और दादी यहीं थे साथ में शिवरीनारायण वाले छोटे बाबा श्री हेमलाल का पूरा परिवार था। सभी हमसे मिलकर बड़े प्रसन्न थे खासकर एकाक्ष से मिलकर सभी खुश थे। वह परिवरजनों का बड़े नाती का बेटा था। मेरे दादा दादी सब खुश थे। सब मिलकर निश्चय किये कि कुलदेव पूजन और प्रसाद ग्रहण करके हम एकाक्ष का जन्म दिन भी यहीं मनायेंगे। .....और अनन फानन में सब तैयारी करने लगे।
शिवरीनारायण में हमारे माखन साव परिवार का भव्य लेकिन प्राचीन मंदिर महानदी के तट पर स्थित है। बहुत बड़ा परिवार और अनेक गांवों और शहरों में परिवारजनों के रहने से मंदिर में भोगराग और देखरेख ठीक से नहीं हो पा रहा था। इसकी समुचित व्यवस्था के सम्बंध में शिवरीनारायण में सभी परिवारजन पापा के साथ बैठकर चर्चा करना चाहते थे। आज अच्छा अवसर देखकर सभी हमारे घर आये थे। चर्चा उपरांत हमने घर में ही अमरीका में जन्में बेटे एकाक्ष के आज जन्म दिन होने और उसके छोटे से कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिये सभी परिवारजनों से निवेदन किया। इसे सबने सहर्ष स्वीकार किया और उत्साह के साथ हमने अपनी पुरानी हवेली में परिवारजनों के बीच एकाक्ष का पहला जन्म दिन मनाया। सभी बड़े खुश थे और मैं बड़ा खुश नसीब था कि अपने बृहद माखन साव परिवार के लोगों के बीच इस प्रकार के उत्सव सादगी से ही सही लेकिन सबकी गरिमामयी उपस्थिति में मनाया। आज मुझे अपने संयुक्त परिवार पर बड़ा गर्व हो रहा है। लेकिन वर्तमान परिस्थिति में जहां लोग अकेले रहने के आदी हो गये हैं, एकल परिवार के बीच अपना सुख दुख मनाने के आदी हो गये हैं उन्हें ऐसी अनुभूति पता नहीं हो पायेगी भी या नहीं ?
मुझे इस बात का भी हमेशा से गर्व रहा है कि मेरे पापा प्रो. अश्विनी, मम्मी श्रीमती कल्याणी और दादा दादी स्व. श्री देवालाल और श्रीमती मिथला देवी भी बहुत ही सामाजिक हैं। वे न केवल अपने परिवार में बल्कि समाज में भी सबसे जुड़कर रहते हैं और यही कारण है कि वे परिवारजनों के बीच अत्यंत लोकप्रिय भी हैं। अमरीका में रहकर भी जब भी मौका मिलता है मैं अपने पापा मम्मी के साथ परिवारजनों से मिलने में बड़ी खुशी होती है।
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