सुनहरी यादें
लखुर्री में बिताए बचपन
अशोक कुमार केशरवानी
लखुर्री की हवेली |
दादा साधराम साव और दादी बुलाकी देवी |
हम सब बच्चे जब तालाब में नहाया करते थे तब गाँव वाले परेशान हो जाया करते थे और कहा करते थे कुंआ का मेंढ़क तालाब में क्यूं आ जाते हो। वास्तव में उनका आशय होता था कि शहरों में हम एक-दो बाल्टी पानी में नहाते हैं और यहां सागर जैसे तालाब में खूब मस्ती करते हुए नहाया करते थे। जब हम तालाब में नहाने जाते थे तब दादा जी हमारे देखरेख के लिये नौकर जरूर भेज देते थे क्योंकि तालाब बहुत बड़ा और गहरा था। इस तालाब से खेतों की सिंचाई भी होती थी। यही कारण है कि हमारे खेतों में अधिक उपज होती थी। उस समय दादा जी के पास एक ट्रेक्टर थी और मिनी राईस मिल भी था।
चाचा ओंकार प्रसाद |
गांव में धान पकने के बाद उसकी कटाई की जाती थी जिसे खेतों से गाड़ा और ट्रेक्टर से ब्यारा में लाकर रखते थे। ब्यारा में धान का बहुत ऊंचा ढेर बन जाता था। हम सब बच्चे पैरावट से पेड़ और पेड़ से पैरावट में कूदते थे। एक बार हम लोगों ने देखा कि पैरावट से पैरा कोठा में जानवरों के खाने के लिए ले जाया जा रहा था। वहाॅ पर लगभग 50-60 किलोग्राम धान बिखरा हुआ था। हमरे पूंछने पर काम कर रहे किसानों ने बताया कि सदा दिन से इस प्रकार के धान पर हमारा अधिकार होेता है। इस बात की चर्चा जब हम लोगों ने दादाजी से की तो उन्होंने भी काम करने वाले मजदूरों की बात का समर्थन किया। लोगों ने कहा कि दादाजी यही मजदूर धान की सिंचाई करते हैं, यही पैरावट डालते और पैरावट से कोठेे मे रखते हैं । इसलिए ये लोग जानबुझकर ज्यादा धान पैरावट में छोड़ देते हैं तांकि बाद में वही धान उन्हें मिलता है। हम लोगों की बात सुनकर दादाजी खुश हो गये और कहा कि आज से ये धान बच्चों का होगा और जब तक छुट्टियां रहेगी, सभी मजदूरों को पहले मुर्रा खिलाने के बाद बचत धान बच्चों को मिलेगा। लगभग 10-15 दिनों में हम लोगों ने 9 बोरा धान इकट्ठा किया था। यह भी एक यादगार पल था। हमारे दादा जी हमारी मस्ती देखकर खूब आनंदित होते थे। उस समय संसाधनों के अभाव के बावजूद हम वहाॅ खूब आनन्द उठाते थे। लखुर्री आने वाले सारे बच्चे आज भी गांव में बिताये हुए उन दिनों को हमेशा याद करते हैं।
अशोक कुमार मनीषा देवी |
मुझे एक और घटना याद आ रही है। पापाजी एम. टेक. करने खड़कपुर गये थे। उस समय मैं लखुर्री में 7 वीं कक्षा में पढ़ रहा था। स्कूल के टीचर रे, बे से बात किया करते थे, तथा बच्चांेबच्चों से पान-सिगरेट मंगाया करते थे। किसी बच्चे को किसी के घर में संतोषी माता का व्रत कथा पढ़ने भेज दिया करते थे। इसकी शिकायत हम लोगों नेे दादाजी से कर दी। दादाजी स्कूल व्यवस्था समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने लोगों अपनी कक्षा में जाने लगे थे।
हम सब बच्चों का बचपन बड़ा बड़ा यादगार रहा है। लोग तो गांव से शहर की ओर जाने लगे हैं, आज हम भी शहरों में रहते हैं लेकिन गांव में बिताये बचपन की स्मृतियां आज भी हमें तरोताजा बना देती है। स्मुतियों की लौ हमें उर्जा प्रदान करता रहेगा। उस समय परिवार के बड़ां बुजुर्गों से जो स्नेह, प्यार और अपनापन मिला है उसे हम ताउम्र नहीं भुला पायेंगे।
लखुर्री की हवेली | हमारा परिवार |
बाबुजी और अम्मा जी | भाइयों के संग |
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