कुलदेव पूजा और नवापानी खाने के लिये पारिवारिक व्यवस्था

कुलदेव पूजा और नवापानी खाने के लिये 

पारिवारिक व्यवस्था 

    
कुलदेव के मंदिर में परिवारजन 

वर्तमान में माखन वंश का परिवार वटवृक्ष की भांति फैला गया है। परिवारजन एक दूसरे को न जानते और न ही पहचान पाते हैं। क्योंकि परिवार के छोटे दायरे में रहने के वे आदी हो गये हैं और उनका किसी से संपर्क नहीं है। नये नये संबंध होने से भले कुछ लोग संपर्क में आते जा रहे हें। नये संबंधों के चलते परिवार के सुख दुख में भी कभी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और आज वार्डसेप का जमाना है, उसी से औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। मोबाईल आने से सबकी दुनियां सीमित हो गई है, आने जाने का झंझट भी नहीं है। यह सही है कि बड़े परिवार होने से दो-तीन सगी बहनें ब्याहने तथा नित नये रिश्ते बनने से पारिवारिक रिश्ते गौड़ हो गये हैं। सारंगढ़, भटगांव, केरा, नवागढ़, मुच्छमल्दा, बेलादूला, सेंदरस, मुंगेली, कवर्धा और खैरागढ़ आदि जगहों में माखन वंश की बेटियां, ब्याही है। अब उनके बच्चों के साथ नये रिश्ते बनते जा रहे हैं। 
परिवार के बुजुर्ग 

    यह बात भी सत्य है कि माखन वंश में एक तरफ डोली और दूसरे तरफ अर्थी निकलता रहा है और शादी ब्याह और शोक पत्र में परिवार के एक ही बड़े बुजुर्ग का नाम विनीत में छपवाया जाता था। यह विडंबना नही तो और क्या है ? 
    परिवार में हसुवा और लखुर्री परिवार के स्वजनों के आने के बाद ही दाह संस्कार और पगबंधी का कार्यक्रम होता था। लखुर्री के श्री रामचंद्र साव, श्री देवचरण साव और चमरू साव परिवार में बड़े रिश्ते में थे और उनके ही सिर में पगबंधी का पागा बंधता था। उनके जीते तक वे इस व्यवस्था को निभाते रहे। बाद में हसुवा के श्री सूरजदीन साव और विद्याधर साव के सिर में पगबंधी का पागा बांधा जाने लगा। उसके बाद तो समूह परिवार के बड़े के सिर में पागा बांधा जाने लगा। 
    
पारिवारिक व्यवस्था के सम्बन्ध में चर्चा 

पहले परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने पर पूरा परिवार अशुद्ध हो जाता था। मृतक कर्म होने के बाद ही शुद्ध हो पाते थे। फिर बरसी (वार्षिक श्राद्ध) होने और पितर मिलाने के बाद ही ‘कुलदेव की पूजा अर्चना के साथ नवापानी‘ खाया जाता था। कुलदेव की पूजा और नवापानी खाने का कार्यक्रम घर की सफाई, पुताई लिपाई और कपड़े लत्तों को धोया जाता था। उस दिन परिवार के मुखिया प्रातः नहा धोकर, पोतिया पहनकर पूजा घर अर्थात् रसोई घर में बैगा के रूप में प्रवेश कर कुलदेव ‘दुल्हादेव‘ को सिंदूर लगाकर, भोग लगाकर पूजा अर्चना करके परिवार की सुख, समृद्धि और खुशहाली के लिए प्रार्थना करते थे उसके बाद ही अन्य परिवारजन नहा धोकर और गीला कपड़ा या पोतिया पहनकर ही दर्शन करने और मत्था टेकने जाते थे।
पारिवारिक व्यवस्था के सम्बन्ध में चर्चा 

सब परिवारजनों के दर्शन करने के बाद ही सब प्रसाद खाते और भोजन करते थे। पूजा घर में बड़े बुजुर्ग की पत्नी बैगीन बनकर वहां भोगराग तैयार कर सहयोग करती थी। उनके साथ उनकी देवरानी और जेठानीन होती थी। लेकिन माखन वंश में परिवारजनों की बहुत बड़ी संख्या थी जिसके कारण पहले मृत व्यक्ति के पितर मिला भी नहीं पाते थे, दूसरे लोगों की मृत्यु हो जाती थी। इसी प्रकार लंबे समय तक न तो कुलदेव की पूजा अर्चना हो पाती थी और न ही नवापानी खा पाते थे। यह परिवार के लिए चिंता की बात थी। इसलिये परिवार में एक ऐसी व्यवस्था बनाने के लिए विचार मंथन होने लगा कि परिवार छोटा अवश्य हो जाये और ऐसी व्यवस्था बन जाये कि मृत व्यक्ति का पितर मिलाकर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने के लिये पितर मिलाकर कुलदेव की पूजा अर्चना कर नवापानी खाने को मिल जाये।    
     
पारिवारिक व्यवस्था के सम्बन्ध में चर्चा 

 
परिवार के बच्चे पढ़ लिखकर शहरों में नौकरी करने लगे और वहीं मकान बनाकर स्थायी रूप से रहने लगे हैं। अधिकांश परिवारजन गांव से बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, भिलाई और जांजगीर आदि में स्थायी रूप से रहते हैं। इससे माखन वंश की गांव की बड़ी बड़ी हवेली खाली हो गया है, उसका समुचित देख रेख, साफ सफाई नहीं होने से वह अब खंडहर बनते जा रहा है। एक गज की मोटी पत्थर की दीवार और चूना, गुड़ तथा बेल के मिश्रण से बने मजबूत और चारों ओर से सुरक्षित हवेली अब खंडहर में बदलते जा रहे हैं। मेरे जैसे कुछ लोग अपने पैत्रिक हवेली के हिस्से का मरम्मत कराना चाहकर भी नहीं करा पा रहे हैं। क्योंकि उसे तोड़ने और मलबा फेंकवाने में जितना खर्च आयेगा उतने में समतल जमीन में नया घर बन जायेगा। ऐसे में उसके मरम्मत कराने में भी परेशानी हो रही है। ऐसे हमारे घर आज ‘भूतहा घर‘ की श्रेणी में आते जा रहे हैं। 
परिवार की महिलाएँ और बच्चे 

    यह भी सही है कि छोटे सीमित परिवार के बीच में हम रहने के आदी हो गये हैं और आज कभी पुरानी हवेली में अकेले रहने की नौबत आ जाये तो हम वहां डर के मारे रह नहीं पाते, फिर वो सुख सुविधा भी वहां नहीं है जो हमें अपने घर या होटलों में मिलती है। बहरहाल, माखन वंश के मालगुजारी 28 गांवों में घर, कुछ में बड़ी बड़ी हवेली, धान रखने के लिए कोठियां (ढाबा), खेतों की सिंचाई के लिए बड़े बड़े तालाब और पीने के पानी की व्यवस्था के लिए सार्वजनिक कुंआ खुदवाया गया था। मालगुजारी उन्मुलन होने से और परिवार में आपसी मतैक्य नहीं होने से ये तालाब अब सरकारी हो गये हैं, अमराई के बगीचों के पेड़ या तो काट डाले गये या फिर पंचायतों के अधीन हो गये हैं। कुंए तो अब सुख गये या पटवा दिये गये। जानकारी के लिए शिवरीनारायण माखन वंश का मुख्यालय था। यह एक पवित्र धार्मिक स्थल होने के कारण यहां परिवार जनों के द्वारा कुंआ खुदवाया गया था जिसे सार्वजनिक रखा गया था। यह पुण्य का भी कार्य था। यहां कुछ लोग मंदिर बनवनाकर मूर्ति स्थापित कराये थे। समिलात में रहने के कारण उसमें पूजा अर्चना और भोगराग की व्यवस्था होती थी। कहीं कहीं इसके लिये स्थायी व्यवस्था बनाने के लिये खेत भी निकाला गया था लेकिन सारे खेत खलिहान मालगुजारी के लंबरदार के नाम होने से परिवारजनों ने बंटवारा के समय उसे भी बांट लिया। क्योंकि इसके लिखित साक्ष्य नहीं है। 
    
माखन वंश के परिवारजन 

परिवारजनों में हमारे इन धरोहरों को बचाये रखने की चिंता भी कम ही है। बल्कि अपने परिवार को छोटे से छोटा रखने की चिंता ज्यादा है। ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार‘ सरकार के इस उक्ति में संयुक्त परिवार न केवल बिखर गया बल्कि परिवारजन अकेले हो गये। ऐसे परिवार के कुछ बुद्धिजीवी जन बिलासपुर में बैठकर व्यवस्था बनाने के लिए विचार मंथन करने लगे। परिवारजनों से संपर्क करने पर परिवार को छोटा करने के पक्ष में लगभग सबकी सहमति होने से एक बृहद बैठक शिवरीनारायण में करने का निर्णय हुआ और अन्य जगहों में रह रहे सभी परिवारजनों को इसमें सम्मिलित होने के लिए सूचना दी गई। बैठक का दिन मुकर्रर किया गया 13. 01. 2002 दिन रविवार।. कार्यक्रम के अनुसार सबको अपने परिवार के साथ आना है, बैठक के बाद सामूहिक भोज और कुलदेव महेश्वरनाथ महादेव और कुलदेवी देवी दाई (शीतला माता) के दर्शन करने का तय किया गया। निर्धारित रविवार, दिनांक 13. 01. 2002 को शिवरीनारायण के केशरवानी भवन में ‘माखन वंश‘ के बृहद सम्मेलन/बैठक में सम्मिलित होने के लिए लखुर्री परिवार के लोग चांपा, लखुर्री, कोरबा से, भादा परिवार के लोग जांजगीर, बिलासपुर से, टाटा परिवार के टाटा, सरसींवा, सारंगढ़ से, हसुवा परिवार के रायपुर, दुर्ग, भिलाई से परिवारजन पहुंचे। शिवरीनारायण और हसुवा के परिवारजन व्यवस्था में लगे थे। लेकिन परिवार के कुछ लोगों को इस बैठक से किसी प्रकार का लेना देना नहीं था वे अपने व्यवसाय में व्यस्त रहे और कुछ लोग अपनी हाजरी लगाकर वापस लौट गये थे। 
देवीदाई मंदिर में परिवारजन 

    बैठक शुरू हुई और चर्चा शुरू हुई, विषय था-‘‘परिवार में मृतक जनों का पितर मिलाना जो वर्षो से संभव नहीं हुआ है, कुलदेव ‘दुल्हादेव‘ की पूजा अर्चना और नवापानी खाने की व्यवस्था संयुक्त परिवार में संभव नहीं हो पा रहा है। इसके लिये आमराय से किसी प्रकार की व्यवस्था किया जाये।‘‘ कुछ लोग परिवार को नारियल फोड़कर अलग अलग हिस्सों में बांट दिये जाने, का सुझाव दिये। श्री गौटियाराम जी जांजगीर परिवार को इस तरह बांटने के पक्षधर नहीं थे। बुजुर्गें लोगों श्री कमला प्रसाद, श्री तुमागम प्रसाद, श्री पराऊराम आदि लोगों ने उनके विचारों का समर्थन किया। बहुत सारे तर्क आये। आशंका भी जतायी गयी कि परिवार को बांटने से आपस में शादी ब्याह न होने लग जाये,। कुछ लोगों ने कहा कि 7-8 पीढ़ी से ज्यादा हो गया है तो परिवार को अलग किया जा सकता है ? 
    
नवापानी खाने के लिए दूल्हादेव पूजा 

पंडित बुलवाये गये और उनसे राय ली गई। उनके अनुसार सात पीढ़ी के बाद परिवार अगर अलग होता है तो ‘‘गोतियार और ‘परिहा‘‘ में बदल जाता है। इसमें परिवार तो अलग होता है लेकिन सुख दुख में खाना खाने के लिए बुलाये जा सकते हैं। फिर सबके बीच व्यवस्था सम्बंधी एक आम राय बनी कि पूरे माखन वंश को पांच भागों में रहने, सुख दुख उनके ही परिवार तक सीमित रहने की बात कही गयी। उस परिवार के लोग किसी प्रकार के अड़चन नहीं होने पर मृतक व्यक्ति का पितर मिला सकते हैं तत्पश्चात् कुलदेव की पूजा कर नवापानी खा सकते हैं। परिवारजनों की आम सहमति के आधार पर ‘‘माखन वंश‘‘ को निम्न पांच भागों में रहनेे की व्यवस्था दी गयी:-  प्रथम भाग में नवा घर, भादा, कमरीद और सिल्ली परिवार सम्मिलित रहेंगे (परिवार के लंबरदार परिवार)।  
दूसरे भाग में पुराना घर के अंतर्गत साजापाली परिवार। इसमें राघव परिवार और महादेव साव परिवार सम्मिलित हैं। (माखन साव के तीसरे और चैथे भाई क्रमशः गोविंद और गजाधर साव परिवार)  
तीसरे भाग में हसुवा परिवार। माखन साव के द्वितीय भाई गोपाल साव का परिवार सम्मिलित हैं।  
    चौथे  भाग में टाटा और झुमका परिवार। माखन साव के चाचा मनसाराम साव का परिवार।  
    पांचवें भाग में लखुर्री परिवार जन सम्मिलित रहेंगे। माखन साव के चाचा सरधाराम साव का परिवार। 
    इसके आधार पर माखन वंश के लोग अपने को स्वतंत्र मानकर मृतक व्यक्तियों का पितर मिलाना, कुलदेव की पूजन और नवापानी खाने का कार्यक्रम करने लगे। बैठक में उपस्थित परिवार के स्त्री पुरूष और बच्चे एक साथ खाना खाये और नदी खड़ स्थित महेश्वरनाथ महादेव और देवी दाई मंदिर जाकर दर्शन कर अपने परिवार की सुख शांति की कामना करके अपने अपने स्थान को लौट गये।
कुलदेव महेश्वर महादेव 

    इस महत्वपूर्ण बैठक में जांजगीर से श्री गौटियाराम, श्री महेश प्रसाद, श्री जागेश्वर प्रसाद,लखुर्री से श्री रामकृष्ण, श्री दिनेश कुमार, श्री संतोष कुमार, प्रो. अश्विनी कुमार, बिलासपुर से श्री तुमागम प्रसाद, प्रो. शंकरलाल, प्रो. बंशीलाल, श्री रामेश्वर प्रसाद, श्री सेवकलाल, श्री रविन्द्र कुमार श्री राजेश कुमार, टाटा से श्री प्यारेलाल, डाॅ. रामलाल, श्री रतनलाल, श्री बैसाखूराम, रायपुर से श्री शिवदत्त प्रसाद, श्री मोतीलाल, श्री राकेश कुमार दुर्ग भिलाई से श्री नरसिंह प्रसाद, श्री वृंदा प्रसाद, श्री प्रभुदयाल, श्री नवल कुमार, हसुवा से श्री विद्याधर साव, श्री बाबुलाल, श्री अर्जुनलाल, श्री त्रिलोकी प्रसाद, श्री भरतलाल और पामगढ़ से क्रांतिकुमार सपरिवार आये थे। स्थानीय लोगों में श्री पराऊराम, श्री हेमलाल, श्री प्रदीप कुमार, श्री बृजेश कुमार, श्री आशीष कुमार, श्री गिरीश कुमार, श्री प्रमिल कुमार आदि अनेक लोग सम्मिलित थे। 
    आज व्यवस्थानुसार परिवारजन अपने को सीमित कर लिये हैं। किसी समूह में किसी की मृत्यु हो जाने पर उसी समूह के लोग अब अशुद्ध होते हैं, दूसरे समूह के परिवारजन अप्रभावित रहते हैं। लेकिन वास्तव में परिवारजनों को किसी के मृत हो जाने पर तीन दिन अथवा मृत्यु के दिन अशुद्ध (दाह संस्कार होने तक) रहकर मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिये। यह भी सत्य है कि माखन वंश के किसी परिवार को एक दूसरे से अलग नहीं किया गया बल्कि पितरों की आत्मा की शांति के लिये पितर मिलाना और कुलदेव की पूजा कर नवापानी खाने की यह एक व्यवस्था है। इसे हमेशा स्मरण रखा जाना चाहिए। मैं माखन वंश की सुख शांति और समृद्धि के लिए कुलदेव-दुल्हादेव, महेश्वरनाथ महादेव और कुलदेवी शीतला माता से प्रार्थना करता हूँ । 
परिवारजन 

कुलदेवी शीतला माता , शिवरीनारायण  कुलदेवी शीतला माता , शिवरीनारायण

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