लखुर्री परिवार

 लखुर्री परिवार

  


    लखुर्री, माखन साव के समय की मालगुजारी गांव है। सन् 1880 में सरवानी के मालगुजार के उधार नहीं चुका पाने पर लखुर्री और मौहाडीह का 16 आना गांव डिग्री में मिला था। माखन साव के चाचा श्री सरधाराम साव पहले अपने दोनों पुत्र शोभाराम और ठुठवासाव के साथ नवागढ़ में रहकर व्यापार शुरू किये थे लेकिन सरधाराम साव का पैर टूट गया और 1872 ई. में शोभाराम की आकस्मिक मृत्यु हो गई जिसके कारण उन्हें आघात हुआ और वे पुनः शिवरीनारायण आकर रहने लगे और यहीं से नवागढ़ जाकर व्यपार करने लगे। आगे चलकर लखुर्री में एक भव्य हवेली का निर्माण परघिया साव दशरथ साव ने कराया गया जिसका क्षेत्रफल 30136 वर्ग फुट है। हवेली के दूसरे भाग को देवचरण साव ने अपने हिस्से में बनवाया था। इसके अलावा कोठा और धान की कोठी भी बना था जो निम्नानुसार है:-

  • हवेली - 30136 वर्ग फुट
    • कोठा - 4046 वर्ग फुट
    • मकान टीनपेाश और बाड़ी - 1372 वर्ग फुट
    • पैरा रखने का पक्का मकान - 45900 वर्ग फुट
    • पक्का मकान धान की कोठी - 2100 वर्ग फुट 
    • कुल क्षेत्रफल 83554 वर्ग फुट
  • इसी प्रकार मौहाडीह का मकान एवं कोठी - 8254 वर्ग फुट
साधराम साव की हवेली 
    पहले सरधाराम साव का परिवार शिवरीनारायण में रहकर नवागढ़ में व्यापार करने लगे। जब लखुर्री और मौहाडीह में हवेली का निर्माण हो गया तब उन्हें वहां कृषि कार्य के देखरेख की जिम्मेदारी दी गई जिसे वे अपने पुत्र ठुठवा साव और पौत्र सिदारसिंग साव के साथ इस कार्य को करने लगे। बुजुर्गों के अनुसार एक बार श्री साधराम साव के ज्येष्ठ पुत्र श्री शोभाराम की तबियत बहुत खराब हो गई और उसके लिए स्थान परिवर्तन कराने की सलाह दी गई तब लखुर्री के परिवारजन लखुर्री की हवेली में जाकर रहने लगे थे। फिर भी वहां के सभी बच्चों की शादी शिवरीनारायण से ही होती थी। लखुर्री में पहली शादी चमरूसाव के ज्येष्ठ पुत्री शिवकुमारी की हुई थी। इसके बाद लखुर्री शाखा के परिवारजन लखुर्री में रहने और विवाह आदि करने लगे। उसके बाद भी शिवरीनारायण के पुराना घर में सबके हिस्से का कमरा था जिसमें उन्हीं का कब्जा था और सुख-दुख और मेला आदि में उनके आने पर उन कमरे को खोला जाता था।
रामचंद्र साव की हवेली के बाजू देवचरण साव की हवेली 
    सन् 1934-35 में इंकम टैक्स बहुत बढ़ जाने के कारण सभी गांवों का खाता अलग किया गया जिसमें लखुर्री का खाता पहले परघिया साव दशरथ साव, परघिया साव की मृत्यु हो जाने पर उनके नाबालिक पुत्र साधराम दशरथ साव और बाद में साधराम रामचंद्र साव के नाम पर चलने लगा। साधराम रामचंद्र साव की लंबरदारी में माखन वंश के गांवों की खरीदी हुई। इस गांव की जमीन बहुत उपजाऊ थी। यहां के खाते से भी महाजनी का कार्य किया जाने गया जिससे लोगों को पैसा लेने के लिए शिवरीनारायण नहीं जाना पड़ता था। इस गांव से माखन वंश में लगभग 25 गांव खरीदने का उल्लेख है। 

सरधाराम साव के दो पुत्र शोभाराम और ठुठवाराम हुए। शोभाराम के एक पुत्र सिदारसिंग दो पौत्र रामसिंग और परघिया साव हुए। परघिया साव के एक मात्र पुत्र साधराम साव हुए। इसीप्रकार ठुठवाराम साव के एक मात्र पुत्र दशरथ साव हुए जिसके तीन पुत्र क्रमशः रामचंद्र साव, देवचरण साव और चमरू साव हुए। उनके वंशज आज लखुर्री में अपने हिस्से में काबिज हैं।


रामचंद्र साव की हवेली  साधराम साव और बुलाकी देवी 


रामकृष्ण और रामकिशोर का परिवार  विसंभर साव का परिवार 
विशेसर साव का परिवार  मनोज का परिवार 
रामप्रकाश का परिवार  रामकृष्ण का परिवार 
ओमप्रकाश का परिवार  चमरू साव की पत्नी श्यामा बाई और बेटियाँ 
रामदयाल और अनुसुईया देवी  अरुण और मृदुला देवी 
संजीव का परिवार  विकेश कुमार का परिवार 
रामदयाल साव की बहुएं  प्रो शंकरलाल और सेवती देवी 
अशोक कुमार और मनीषा देवी  ई अविचल कुमार का परिवार 
अरुण कुमार का परिवार  प्रो शंकरलाल का परिवार 
चमरू साव  संतोष कुमार  ओंकार प्रसाद 
रामकृष्ण  विसेसर प्रसाद  डॉक्टर संजय कुमार 
डॉक्टर सोनल  अगत्य और अधीर कुमार 
शोभाराम का परिवार  मनोज कुमार का परिवार 
श्याम किशोर मिथलेश  संतोष कुमार का परिवार 
लखुर्री परिवारजन  रामदयाल साव के पुत्र और पुत्रियाँ 
देवचरण साव और राधा देवी  देवचरण साव की पुत्री दामाद काली सुदामा जी 
तालदेवरी का घर 

देवचरण साव के पुत्र दिनेश कुमार का परिवार 

 

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