हसुवा परिवार

 हसुवा  परिवार

    

‘‘हसुवा‘‘ 1650 एकड़ 84 डिस्मिल रकबे का एक छोटा सा गांव था जो कटगी-बिलाईगढ़, सोनाखान और देवरी जमींदारी के बीच में स्थित था और इसे बाद में धीरसाय साव के परिवार ने 1800 ईसवीं में खरीद लिया और वहां खेती किसानी करने लगे। अधिक उपजाऊ और मेहनत से यहां फसलें अच्छी होने लगी। यही उनकी पहली 16 आना मालगुजारी गांव थी। यहां उन्होंने एक बड़ा सा धान रखने की कोठी (ढाबा) बनवाया था। हांलाकि मयाराम साव हसुवा की खेती किसानी का कार्य पहले आसनिन से कर रहे थे। लेकिन सोनाखान जमींदार नारायणसिंह के द्वारा 1856 ई. में हसुवा के ढाबा को जबरदस्ती फोड़वाकर धान लूटकर ले गये और आगे भी लूटपात करने तथा डराने धमकाने पर डरकर मयाराम अपने पुत्र माखन साव समेत परिवार के साथ शिवरीनारायण आ गये। शिवरीनारायण तब मठ के महंतों के महंतपारा और शबरीनारायण मंदिर के पुजारी भोगहा परिवार की मालगुजारी भोगहापारा था। उस समय मंदिर के पुजारी भगीरथ भोगहा थे जिन्होंने अपने पुत्र बालाराम भोगहा के सहयोग से धीरसाय के परिवार को यहां बसाया। यहां घर बनाने में उनका पूरा सहयोग मिला। अब हसुवा गांव की खेती किसानी का काम शिवरीनारायण से किया जाने लगा। 

    सोनाखान के जमींदार शुरू से आसपास के जमींदारों और ब्रिटिश सरकार को परेशान किया करते थे। वहां का जमींदार उग्र स्वभाव के तो थे ही, उनका कहा नहीं मानने पर जबरदस्ती भी करते थे जिससे सभी परेशान रहते थे। ब्रिटिश अधिकारी मि. एगेन्यु के प्रशासन काल में सोनाखान के जमींदार रामाराय ने 1819 ईसवीं में विद्रोह किया था। सन् 1818 ई. में मराठा शासन की समाप्ति के बाद सोनाखान जमींदारी ब्रिटिश शासन के नियंत्रण में आ गयी थी। रामाराय ब्रिटिश नियंत्रण से बौखला गया और क्रुद्ध होकर खालसा के 300 गांवों पर कब्जा कर लिया था। तब ब्रिटिश अधिकारी जेनकिन्स ने कम्पनी को सूचित किया-‘‘सोनाखान का जमींदार परिवार ब्रिटिश प्रभूता को पसंद नहीं करता। रामाराय के पिता और स्वयं रामाराय छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश प्रशासन के लिए खतरा बना हुआ है।‘‘ उस समय ब्रिटिश प्रशासन ने सैन्य टुकड़ी भेजकर सोनाखान के विद्रोह का दमन किया था। बाद में संधि के बाद रामाराय को पुनः सोनाखान की जमींदारी सौंपी गई। सन् 1821 में सोनाखान जमींदार रामाराय की मृत्यु हो गई। उसके बाद उनके पुत्र नारायण सिंह ने सोनाखान की जमींदारी सम्हाली। (छत्तीसगढ़ के इतिहास से) 

    कसडोल निवासी खरौदगढ़ और कोटगढ़ के गढ़ाधिपति ज्वालाप्रसाद मिश्र का परिवार भी सोनाखान जमींदार से संत्रस्त था। देवरी के जमींदार परिवार जो उनका पारिवारिक सदस्य था को भी नारायणसिंह और उनके पुत्र गोविंदसिंह से पीड़ित थे। हसुवा और शिवरीनारायण के माखन साव के हसुवा के धान की कोठी को फोड़वाकर जबरदस्ती धान निकलवाये थे। माखन साव की रिपोर्ट पर सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह को 24 अक्टूबर 1856 को संबलपुर से गिरफ्तार किया गया था। लेकिन जेल से फरार हो जाने के बाद नारायण सिंह का विरोध ब्रिटिश सरकार से हो गया। ब्रिटिश सरकार से नारायण सिंह का पहले ही विरोध था ही, उनके रायपुर जेल से फरार होने के बाद ब्रिटिश सरकार सैन्य बल के साथ नारायण सिंह को गिरफ्तार करने निकल पड़ी। उनके इस अभियान में स्थानीय अन्य जमींदार, मालगुजार और गोंटिया लोग भी सहयोग किये क्योंकि सोनाखान जमींदार से सभी परेशान थे। अंततः नारायण सिंह को 5 सितंबर 1857 को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और 10 दिसंबर 1857 को रायपुर के जय स्तम्भ के पास फांसी दी गई। इस प्रकार उनके आतंक से मुक्ति मिली। हालांकि 1980 में मध्यप्रदेश शासन के द्वारा नारायण सिंह को आदिवासी वोट के लिए महिमा मंडित किया गया और इतिहास के अभिलेखों को अनदेखा कर दिया गया। यही नहीं बल्कि वीर नारायण सिंह की वीरता के अनेक लेख प्रकाशित कराये गये। शोध विधि को दरकिनार करते हुए एकतरफा महिमा गान किया गया जिसे किसी भी मायने में उचित नहीं कहा जा सकता।

    आगे चलकर हसुवा में भी एक भव्य हवेली का निर्माण गोपाल साव ने कराया जो 16634 वर्ग फुट क्षेत्रफल में बना हुआ है। हसुवा के हवेली के अलावा अनेक हिस्से में धान रखने की कोठी का निर्माण कराया गया था। परिवार तो बहुत छोटा था। सबसे बड़े पुत्र मयाराम साव के चार पुत्र क्रमशः माखन, गोपाल, गोविंद और गजाधर हुए। हसुवा के कृषि कार्य पहले मयाराम साव शिवरीनारायण से आकर किया करते थे, आगे चलकर उनके द्वितीय पुत्र गोपाल साव यहां के कृषि कार्य की देखरेख करते रहे। शिवरीनारायण में मयाराम साव महाजनी का काम शुरू किये। मालगुजार, गौंटिया, जमींदार और राजा लोग उनसे पैसा उधार लेने लगे। तत्कालीन दस्तावेज में कटगी-बिलाईगढ़, भटगांव, सोनाखान, चांपा, सारंगढ़, सक्ती और रायगढ़ के अलावा मध्य भारत, बरार के राजा और जमींदार के पैसा लेने का उल्लेख मिलता है।

    हसुवा, माखन साव परिवार की पहली मालगुजारी गांव है। यहां की कृषि भूमि बहुत उपजाऊ है। दस्तावेज के अनुसार यहां 1650 एकड़ 84 डिस्मिल रकबा था जिसमें खेती किसानी होती थी। यहां का प्रमुख तालाब को बैजनाथ साव खुदवाये थे जिससे पूरे गांव की निस्तारी होती थी। समय समय पर उससे खेतों में सिंचाई की जाती थी। इस तालाब के पास महेश्वर महादेव का एक मंदिर श्री गोपाल साव के पुत्र श्री बैजनाथ साव ने बनवाया था। वास्तव में यह शिवरीनारायण में स्थित महेश्वरनाथ महादेव का प्रतिरूप है। शिव मंदिर के निर्माण और नित्य पूजा अर्चना से परिवार में वंश वृद्धि के साथ सुख, शांति और वैभव बनी रहती है। इस मंदिर के भोगराग की व्यवस्था के लिये पांच एकड़ (पांच रूपये लगान की) कृषि भूमि निकाली गई थी जो समिलात में लंबरदार के नाम से था। हसुवा में प्रमुख घर को आधा गांव में बना हुआ माना जाता है। इसकी दीवारें एक गज की और पत्थर से बनी है। वास्तव में यह हवेली भव्य, मजबूत और पूरी तरह से सुरक्षित है। बहुत बाद में गोपाल साव का परिवार हसुवा में रहने लगा था। माखन वंश में गोपाल साव के ज्येष्ठ पौत्र श्री बलभद्र साव को लंबरदार बनाये जाने के बाद हसुवा में उनके द्वितीय पुत्र श्री चंद्रिकाप्रसाद गिरीचंद साव की लंबरदारी में मालगुजारी कार्य सम्पन्न होने लगा। यह बहुत सम्पन्न गांव था। हसुवा के मालगुजारी खाते से लगभग 20 गांव खरीदा गया था। इस प्रकार श्री आत्माराम साव सूरजदीन साव शिवरीनारायण की मालगुजारी में लखुर्री के बाद हसुवा से सबसे ज्यादा गांव खरीदने का रिकार्ड है। इस गांव से दूध, दही, घी और राशन आदि शिवरीनारायण आता था। हर सुख और दुख में यहां के लोग सबसे पहले पहुंचते थे। हसुवा में प्रमुख हवेली के अलावा अनेक घर बने थे जो निम्नानुसार है:-

  1. प्रमुख घर   16634 वर्ग फुट
  2. नम्मू बाड़ा   2697 वर्ग फुट और 1816 वर्ग फुट कुल 4513 वर्ग फुट
  3. टीन पोश बंगला   864 वर्ग फुट
  4. जरहा बाड़ा   1920 वर्ग फुट
  5. कोठा, टीन व खप्पर 2440 वर्ग फुट
  6. कोठी, टीन व खप्पर 7212 वर्ग फुट
  7. राम सागर कोठी   1080 वर्ग फुट
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कुल रकबा 34663 वर्ग फुट

हसुवा के बैजनाथ साव का परिवार पहले शिवरीनारायण की पुरानी हवेली में ही निवास करते थे। सभी बच्चों की शादी भी शिवरीनारायण के घर से होती रही है। बहुत बाद में हसुवा की हवेली में परिवारजन रहने लगे। बैजनाथ साव के चार पुत्र क्रमशः बलभद्र साव, गोकूल साव, प्रहलाद साव और गिरीचंद्र साव हुए। बलभद्र साव के चार पुत्र क्रमशः कृपाराम साव, चंद्रिका प्रसाद साव, सूरजदीन साव और विद्याधर साव हुए। गोकूल साव के एक मात्र पुत्र लखनलाल साव हुए। प्रहलाद साव के दो पुत्र क्रमशः महिधर साव (चंदनहा साव) और भागवत साव (झाड़ू राम साव) और गिरीचंद्र साव के तीन पुत्र क्रमशः मुरीत राम साव, इंद्रजीत साव और कौशल प्रसाद साव हुए। इस प्रकार गोपाल साव के परिवार का विस्तार हुआ। बलभद्र साव माखन वंश की मालगुजारी खेदूराम गनपत साव और बलभद्र साव के नाम से चलती थी। बलभद्र साव की मृत्यु के बाद सूरजदीन साव को आत्माराम साव के साथ मालगुजारी खाता में जोड़ा गया था। हसुवा की मालगुजारी खाता चंद्रिका प्रसाद गिरीचंद्र साव के नाम से चलता था। 

हसुवा से अनेक बच्चे पढ़ने के लिये बिलासपुर गये थे। फिर उनकी नौकरी बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग भिलाई में लग गई और उनका परिवार वहीं घर बनाकर रहने लगा था। इनमें श्री कौशल प्रसाद (बिलासपुर), श्री गोपाल प्रसाद, श्री पराऊराम, श्री कृष्णलाल, श्री गोरेलाल, श्री बाबुलाल, श्री परमेश्वर प्रसाद, श्री मोतीलाल (रायपुर), श्री नरसिंह प्रसाद (दुर्ग), श्री ईश्वर प्रसाद, श्री अर्जुन लाल, श्री बृंदा प्रसाद (दुर्ग), श्री प्रभुदयाल (दुर्ग), श्रीलाल (दुर्ग), श्री किशोरीलाल, श्री विश्वनाथ प्रसाद, श्री नवल कुमार (दुर्ग) और अब श्री रविन्द्र कुमार (बिलासपुर), श्री राकेश कुमार (रायपुर) और श्री राजेश कुमार (बिलासपुर) प्रमुख है। सबके सहमति से आपसी बटवारा हुआ और अपने अपने हिस्से में सभी काबिज हैं। 

हसुवा की हवेली 
छुहिया तालाब , हसुवा 
कुलदेव महेश्वरनाथ महादेव , हसुवा 
ग्रामदेव हसुवा पाठ 
हसुवा के लम्बरदार चन्द्रिका साव  गोपाल प्रसाद के सुपुत्र विश्वनाथ प्रसाद का परिवार 
गोपाल प्रसाद  परमेश्वर प्रसाद 
संसार बाई पति कृपाराम साव  भरतलाल आत्मज कृपाराम साव 
रघुनाथ प्रसाद आत्मज कृपाराम साव  सूरजदीन साव के सुपुत्र पराऊ राम का परिवार 
माखन वंश के लम्बरदार सूरजदीन साव  सूरजदीन साव के सुपुत्रबाबूलाल का परिवार 
पराऊ राम के सुपुत्रआशीष कुमार  बलभद्र साव के सुपुत्र विद्याधर साव 
बलभद्र साव की पुत्री बुलाकी देवी  गोकुल साव के पुत्र लखन साव 
विद्याधर साव पत्नी लीलाबाई के साथ  महरीन देवी 
राजेंद्र कुमार का परिवार  बल्देव साव पुत्र लखनलाल 
गोरेलाल का परिवार  अशोक कुमार का परिवार 
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स्वाति के शादी के अवसर पर  बचपन की यादें 
महीधर उर्फ़ चंदनहा साव  शुकवारा बाई  बैसाखा बाई 
कृष्णलाल  अर्जुनलाल  भागवत उर्फ़ झाड़ू साव 
अर्जुनलाल परिवार  प्रमिल कुमार 
मुरितराम साव  किशोरीलाल परिवार 
नरसिंग प्रसाद परिवार  श्रीलाल परिवार 
शिवम् परिवार  गोरेलाल परिवार 
इंद्रजीत साव  कौशल प्रसाद परिवार 
चन्द्रिका साव की बेटी खुदरी बाई और बृंदा प्रसाद  मुरीत साव की बेटी कल्याणी ,सारंगढ़ 
नवल कुमार  प्रभुदयाल  गीता प्रभुदयाल 
धीरेन्द्र नीता  धीरेन्द्र कुमार का परिवार 
द्वारिका प्रसाद परिवार  रघुनाथ साव की बेटी सुमित्रा भानु प्रकाश 
रविंद्र कुमार का परिवार  राकेश केशरवानी 
राजेश कुमार का परिवार  रजनी 
डॉक्टर पंकज और डॉक्टर नेहा  प्रमेश कुमार  ई अमन केशरवानी 
आकृति  ई आकांक्षा केशरवानी  डॉक्टर ऋतुराज 
सी ए शुभम कुमार  सी ए मिनी  सी ए श्रीजिता 
शेखर की शादी में  चंद्रशेखर की शादी में परिवार जन 


डॉक्टर ऋतुराज के साथ प्रमिल 











हसुवा परिवा के वंशज 

नरसिंह प्रसाद की बेटियां 

श्रीलाल के पुत्र गजेंद्र कुमार 

हसुवा परिवार के वंशज 



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