राज केशरवानी की कल्याणी केशरवानी से बातचीत
आधी आबादी के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए:
श्रीमती कल्याणी केसरवानी
हमारा समाज सदियों से पुरूष प्रधान रहा है, जहां हमेशा से महिलाओं के साथ दोयम व्यवहार होता रहा है। ऐसे में आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं ने जब भी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की कोशिश की है उसे दबाने का हर संभव प्रयास किया जाता रहा है। इसके बावजूद आज महिलाएं ग्राम, नगर, प्रदेश और राष्ट्रीय परिदृश्य में अपनी पहचान बनाने में सफल रही है। सभी स्तर पर महिलाओं को असहयोग झेलना पड़ता है। मैंनं अपने महामंत्री और अध्यक्षीय कार्यकाल में महिलाओं को अपने अधिकार के प्रति जागृत करने में सफल रही या असफल ये तो समय ही बतायेगा मगर इतना जरूर है कि आने वाले समय में उनके अस्तित्व को स्वीकार करना ही पड़ेगा। तभी समाज की कुरीतियों को दूर किया जा सकेगा। लोगों को अब ये समझ लेना चाहिए कि महिलाएं केवल मंच की शोभा नहीं बने रहना चाहती बल्कि हर क्षेत्र में कार्य करने में सक्षम है। यही नहीं उनके बिना समाज का विकास संभव ही नहीं है। उक्त कथन अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महिला महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती कल्याणी केसरवानी की है। मुंगेली के प्रतिष्ठित मालगुजार और आजादी के बाद सी. पी. एण्ड बरार के पहली विधान सभा के विधायक स्व. श्री अम्बिकाप्रसाद केसरवानी की पौत्री और शिवरीनारायण के प्रतिष्ठित मालगुजार माखन वंश के श्री देवालाल केसरवानी की कुलवधू होने के बावजूद उनमें समाज सेवा की भावना कूट कूटकर भरी है। चांपा केसरवानी नगर वैश्य महिला सभा की स्थापना से लेकर प्रथम अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ प्रदेश की प्रथम महिला सभा की प्रदेश कोषाध्यक्ष रहकर राष्ट्रीय महिला महासभा की पहले महामंत्री और उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उल्लेखनीय कार्य कर अपनी पहचान बना चुकी है। समाजिक पत्रिका केसर ज्योति के लिए उनसे ली गई साक्षात्कार के कुछ अंश प्रस्तुत है।
कल्याणी केशरवानी |
0 समाज सेवा की ओर आपका झुकाव कैसे हुआ ?
बहू कल्याणी देवी |
0 समाज सेवा और घर परिवार के बीच आप तालमेल कैसे करती हैं ?
समाजिक प्राणी होने के नाते मैं अपने घर परिवार से जितनी जुड़ी हूँ शायद ही कोई जुड़ी हो। घर परिवार तो सभी चलाते हैं। सास-ससुर, देवर-देवरानी, पति और बच्चे सभी की अपेक्षाओं में खरा उतरना बहुत मुश्किल होता है। मगर ईश्वर की कृपा और परिवारजनों का ही स्नेह और सहयोग का ही परिणाम है कि मैं अपने घर परिवार और समाज सेवा के बीच तालमेल बनाने में सफल हो सकी हंू। घर के कामों को निबटाकर जो काम हम महिलाएं लागों की चारी-चुगली (गप्पबाजी) में लगाती हैं उसे समाज सेवा में लगाएं तो यह सद्कार्य होगा।
0 घर परिवार और समाज सेवा का अब तक आपका क्या अनुभव रहा ?
मैंने पहले ही कहा कि मेरा घर परिवार एक आदर्श परिवार की तरह सामंजस्यपूर्ण है। सब कार्य आपस में मिल जुलकर करते हैं। कभी तालमेल नहीं हो पाता तो एडजस्ट कर लेते हैं। मैं इंटरनेशनल संस्था लायनेस क्लब और चांपा सेवा संस्थान के अलावा अनेक साहित्यिक समितियों राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी से भी जुड़ी हंू। मैं अपना कोई भी समय खाली नहीं रखना चाहती। जबकि अन्य परिवारों में लोग अपने ही घर-परिवार के कामों में उल्झी रहती हैं। मुझे तो राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते देश के अनेक नगरों में आयोजित बैठकों और कार्यक्रमों में जाना पड़ता है। मेरे इस कार्य में मेरे परिवारजन मेरा साथ देते हैं। मेरा विरोध तो वही करते हैं जो अपने घर की महिलाओं को पद तो दिलाना चाहते हैं मगर घर के सीमित दायरे में बांधकर रखना भी चाहते हैं। मुझे राष्ट्रीय महासभा में बार बार महिला महासभा की पूरी कार्यकारणी नहीं बनाने के लिए दबाव डाला जाता रहा है। जबकि मेरा मानना है कि महिला बहनों को कार्यकारिणी का सदस्य बनाकर मैं ज्यादा से ज्यादा समाज से जोड़ने में कामयाब हो सकी हूँ। आज तक प्रदेश और राष्ट्रीय महासभा के द्वारा महिलाओं की उपेक्षा की जाती रही है। उन्हें मिलकर आपस में परिचय करने और बात करने नहीं दिया जाता है। मैं हर मंच में इसका विरोध करके उन्हें स्थान दिलाया है। मेरा आज तक यही अनुभव रहा है कि महिलाओं को केवल मंच की शोभा न बनाकर उन्हें सहयोग दें तभी समाज को विकास पथ पर आगे ले जाया जा सकता है।
0 आप लेखन भी करती हैं। आपने अभी तक क्या क्या लेखन किया है ?
जी हां ! मैं एक गृहणी, समाज सेविका के साथ लेखिका भी हूँ । जब से मैंने दाम्पत्य जीवन शुरू किया है तब से मुझे मेरे पति प्रो. अश्विनी केसरवानी जो एक सफल और प्रतिष्ठित लेखक हैं, के निर्देशन में मैंने लेखन कार्य शुरू किया। मैं अपने घर-परिवार और समाजिक जीवन में घटने वाली तथ्यों को कोरे कागज में आकार देने लगी और जब वह पत्र-पत्रिकाओं में छपती तो पाठकों के पत्र आने लगते तो मुझे खुशी होती और मैं दोगुने उत्साह से लिखने लगती। लोगों को लगता कि मैं उनके बारे में लिख रही हूँ। ... और जब उन्हें मेरे द्वारा सुझाए विधि से समास्या से निजात मिल जाता है। मैं आपने आस पास घटने वाली समस्याओं को देखती हूँ, उसके उपर चिंतन-मनन करती हंू और फिर जब लिखती हूँ तो लोगों का स्नेह मुझे जरूर मिलता है। मेरी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से छपती रही है। मैं उन्हें ‘‘घर-परिवार‘‘ शीर्षक से पुस्तक आकार दे चुकी हूँ। श्री प्रकाशन दुर्ग (छत्तीसगढ़) से वह प्रकाशित हो चुकी है।
0 आपने अपने लेखन में घर-परिवार को ही क्यों चुना, कोई खास वजह ?
देखिए भाई साहब ! हमारे पारिवारिक जीवन में छोटी मोटी बातें कितनी विकराल रूप ले लेती है। कभी कभी तो परिवार पूरी तरह से बिखर जाता है। लोग हत्या या आत्म हत्या जैसा घिनौना कार्य कर बैठते हैं। असंतोष, असहयोग, नासमझ और जिद हमें न केवल अपने घर-परिवार से बल्कि अपने आप से भी अलग कर देती है। अक्सर देखने में आता है कि घर में जेन्ट्स दरोगा की भूमिका में होते हैं और अपनी बात जबरदस्ती करके मनावाने का प्रयास करते हैं। बच्चे या महिलाएं जब इसका विरोध करती हैं तो यहीं से असंतोष और असहयोग पनपने लगता है। धीरे धीरे यही असंतोष मौका पाकर ज्वालामुखी जैसे फट पड़ता है और पूरा परिवार बिखर जाता है। मैंने जब ऐसा होते देखा तो मेरा मन पसीज उठा और मेरी लेखनी खुद-ब-खुद इस ओर चलने लगी। मैंने इन विषयों पर खूब चिंतन मनन करने के बाद ही कोई निष्कर्ष पर पहुंच पाती हूँ। घर-परिवार में सुख और शांति हो इससे अच्छा और क्या हो सकता है। देखने में तो यही आता है कि घर-परिवार की आशांति को लोग समाज और अपनी दैनिक क्रिया कलापों में ले आते हैं जो उचित नहीं है।
0 आप नगर, प्रदेश और राष्ट्रीय महासभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया है। आपका इस पर क्या अनुभव रहा है ?
यह सही है कि चांपा जैसे कस्बे में महिला बहनों को ही पुरूषों को संगठित करने के लिए मैंने प्रयास किया है और उसमें सफल भी हुई हूँ। छत्तीसगढ़ प्रदेश केसरवानी वैश्य महिला सभा की प्रथम कार्यकारिणी में मैं कोषाध्यक्ष रही और सन् 2006 में इलाहाबाद में मुझे अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महिला महासभा की द्वितीय कार्यकारिणी में महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। तब इलाहाबाद में मेरे पति प्रो. अश्विनी केसरवानी छत्तीसगढ़ प्रदेश सभा के अध्यक्ष के रूप में प्रतिनिधित्व कर रहे थे और उनके साथ छत्तीसगढ़ से अनेक लोग थे। सबका स्नेह, प्रोत्साहन और सहयोग मुझे मिला और मैं इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार की। महिलाएं को घर से बाहर लाना एक चुनौती ही तो था और मैं सबके सहयोग से यह कार्य करने में सफल रही। महिला बहनों ने मुझे इस कार्य में पूरा साथ दिया है। फिर मुझे अमरावती में आयोजित अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महासभा की प्रथम बैठक में महिला महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। मैंने अपनी कार्यकारिणी के सहयोग से अनेक प्रदेशों में महिला सभा का न केवल गठन कराया बल्कि बिखरे लोगों को संगठित करने का कार्य भी किया है। महाराष्ट्र के थाणे नगर में बरसों से संगठित‘ ‘‘केसरी सुरभि‘‘ संगठन के वार्षिक उत्सव में शामिल होकर उन्हें राष्ट्रीय महासभा से जोड़ा। इसीप्रकार लखनऊ नगर की बहनें अपना स्वतंत्र संगठन बनाकर कार्य करती थी, मैंने अपने लखनऊ प्रवास में राष्ट्रीय महामंत्री श्री अनिल केसरवानी और प्रो. अश्विनी केसरवानी के साथ उनके साथ बैठक की और उन्हें राष्ट्रीय महासभा से जोड़ने में सफल हुई। यह बात सही है कि आने जाने से न केवल संपर्क बढ़ता है बल्कि लोगों की गलत फहमियां दूर होती हैं और इससे समाजिक संगठन मजबूत होता है।
0 आप लायनेस क्लब से भी जुड़ी हैं। क्या लायनेस क्लब और समाज सेवा में कुछ तालमेल है ?
जी हां ! मैं सन् 1997-98 में लायनेस क्लब चांपा से जुड़ी हुई हूँ। क्लब के विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए 2003-04 में मैं लायनेस क्लब चांपा की अध्यक्ष बनी और मेरे कार्यकाल में क्लब की गतिविधियों का लेखा जोखा को रेखांकित करने वाली पत्रिका प्रेरणा का प्रकाशन भी हुआ। मैं डिस्ट्रिक्ट 323 सी का चेयर पर्सन, मल्टीपल चेयर पर्सन रहते सन् 2010-11 में डिस्ट्रिक्ट प्रेसीडेंट लायनेस संगीता अग्रवाल की केबिनेट सचिव बनी और वर्तमान सत्र 2013-14 में मैं एरिया 07 की एरिया आफिसर हंू। समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के उद्देश्य से 16 दिसंबर 1975 को अमरीका में 40 सदस्यीय और कोलकाता में 21 जनवरी 1975 को पहला लायनेस क्लब का गठन किया गया। वर्तमान में विश्व के 92 देशों में पांच मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट और 79 लायनेस डिस्ट्रिक्ट हैं। विभिन्न सेवा गतिविधियों को सम्पन्न करते हुए अनेक समाजिक संस्थाओं से संपर्क होता है जिससे व्यक्तित्व में अवश्य निखार आता है। मैं ऐसा महसूस करती हंू कि मैं इस इंटरनेशनल संस्था से जुड़कर समाज को गति देने में अवश्य सफल हुई हूँ।
0 आपने सन् 2013 को केसरवानी समाज का ‘राष्ट्रीय बालिका वर्ष‘‘ घोषित किया था। इसकी क्या उपलब्धि है ?
21 जनवरी 2013 को चांपा में अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महिला महासभा की कार्यकारिणी की बैठक और छत्तीसगढ़ प्रदेश केसरवानी महिला सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ था जिसमें सर्वसम्मति से वर्ष 2013-14 को ‘‘राष्ट्रीय बालिका वर्ष‘‘ घोषित किया गया था। मुझे बताते हुए हर्ष हो रहा है कि पूरे देश में बालिका की शिक्षा, स्वास्थ्य और उसके व्यक्तित्व को निखारने के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये। इससे जन जागृति आयी है। अब बालक और बालिका में कोई भेद नहीं रह गया है। आने वाले समय में निश्चित रूप ऐसे अनेक कार्यक्रम अवश्य आयोजित किये जायेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।
0 क्या आप अपने कार्यों से संतुष्ट हैं ?
मैं समाजिक उत्थान के लिए कार्य किया है और मैं अपने कार्यो से पूरी तरह संतुष्ट हूँ। कोई भी कार्य पूरा नहीं होता और उसमें और अच्छा कार्य करने की संभावना रहती है। इसके लिए आने वाली कार्यकारिणी से उसे पूरा करने की अपेक्षा की जा सकती है।
0 क्या आप राजनीति में आना चाहेंगी ?
मेरे दादा जी स्व. श्री अम्बिका प्रसाद केसरवानी सन् 1952 में रामराज्य परिषद से एम.एल.ए. थे। मेरे ताऊ स्व. निरंजन प्रसाद केसरवानी बिलासपुर लोकसभा के सांसद, जरहागांव-पथरिया, और लोरमी विधान सभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के विधायक रहे हैं। मेरे भैया श्री प्रदीप केसरवानी, श्री कमलेश्वर केसरवानी और मौसा श्री रामकुमार केसरवानी भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न पदों पर कार्य कर रहे हैं। मैं भी पार्टी की सक्रिय सदस्य और जिला कोषाध्यक्ष हूँ मुझे राजनीति विरासत में मिली है।
0 वैश्य सभा से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं ?
चूंकि मैं चांपा जैसे छोटे से नगर से राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त किया हंू। घर-परिवार और समाज महिलाओं के बिना अधूरा है। आधी आबादी महिलाओं की है और आज कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां महिलाएं पुरूषों से कंधा मिलाकर कार्य नहीं कर रही हो। इस लिए मैं सभी स्तर के सभासदों से अनुरोध करती हूँ कि महिलाओं के अस्तित्व को स्वीकार करें और उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करें, सहयोग करें तभी समाज की कुरीतियों को दूर किया जा सकता है।
0 समाज हित में आप और कुछ कहना चाहेंगी ?
सुखी जीवन के लिए महिला बहनों को अनेक घर परिवार और समाज में अनेक प्रकार का संघर्ष करना पड़ता है ठीक उसी प्रकार समाज के उत्थान के लिए मैं महिला बहनों से आव्हान करना चाहती हूँ कि वे गृह कार्यो से निवृत होकर कुछ समय समाज में लगाएं।
परिचय
नाम - कल्याणी केसरवानी
कल्याणी केशरवानी |
पति - प्रो. अश्विनी केसरवानी
माता-पिता - श्रीमती शुकवारा-श्री निर्मलप्रसाद केसरवानी
सास-ससुर - श्रीमती मिथलेश नंदनी-श्री देवालाल केसरवानी
जन्म - 19 अक्टूबर 1963, मुंगेली के प्रतिष्ठित मालगुजार स्मृतिशेष श्री अम्बिका प्रसाद
केसरवानी की पौत्री के रूप में जन्म।
अभिरूचि - पर्यटन, समाज सेवा और स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन - पत्र-पत्रिकाओं में समाजिक लेखों का प्रकाशन, मेरी पुस्तक ‘‘घर परिवार‘‘
श्री प्रकाशन दुर्ग, छत्तीसगढ़ से प्रकाशित
साहित्य संस्था - अक्षर साहित्य परिषद चांपा की उपाध्यक्ष, निराला साहित्य मंडल चांपा की
सदस्य।
प्रसारण - आकाशवाणी के बिलासपुर केंद्र से वार्ता प्रसारित।
लायनेस क्लब - लायनेस क्लब चांपा से 1997-98 से जुड़ी और 2003-04 में अध्यक्ष बनीं
2011-12 में लायनेस डिस्ट्रिक्ट की केबिनेट सचिव
लायनेस चेयर पर्सन, मल्टीपल चेयर पर्सन और 2013-14 में एरिया 07 के
एरिया आफिसर
समाजिक संस्था - चांपा सेवा संस्थान की संस्थापक सदस्य
- नगर केसरवानी वैश्य महिला सभा की प्रथम अध्यक्ष
- छत्तीसगढ़ केसरवानी वैश्य महिला सभा की प्रथम कार्यकारिणी में कोषाध्यक्ष
- अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महिला महासभा की द्वितीय कार्यकारिणी में
राष्ट्रीय महामंत्री और सम्प्रति राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय केसरवानी
वैश्य महासभा का आजीवन सदस्य
- अध्यक्ष, केसरवानी वैश्य वेलफेयर ट्रस्ट (महिला ईकाई)
पुरस्कार/सम्मान - विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से पुरस्कृत और सम्मानित। अनेक नगर और
प्रदेश सभा से ‘समाज रत्न‘ से सम्मानित।
लायनेस एरिया, डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल से सर्वश्रेष्ठ सचिव, सर्वश्रेष्ठ अध्यक्ष,
फाइव स्टार अध्यक्ष आदि का अवार्ड प्रदत्त।
सम्प्रति - राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महिला महासभा
संपर्क - ‘‘राघव‘‘ डागा कालोनी,बरपाली चैंक चांपा-495671 (छत्तीसगढ़)
मो. 09424143212
(केसर ज्योति से साभार )
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