राघव परिवार

गोविन्द साव के प्रपौत्र राघव परिवार 

शिवरीनारायण की हवेली 

माखन साव के अनुज श्री गोविंद साव के जगन्नाथपुरी की यात्रा और मनौती के रूप में जन्में उनके एकलौते पुत्र जगन्नाथ साव की धर्मप्रियता पर भी किसी को संदेह नहीं है। कदाचित् यही कारण है कि आज भी गोविंदसाव के वंशजों का मुंडन संस्कार जगन्नाथपुरी में किये जाने का विधान है। मेरे पिता जी, मेरा और मेरे बच्चों का मुंडन संस्कार भी पुरी में हुआ था। जगन्नाथ साव के एक मात्र पुत्र पचकौड़ साव हुए। माखन वंश में उनकी विद्वता की साख थी और इस वंश के लंबरदार आत्माराम भी उनकी दबंगता से प्रभावित थे। उन्हें साजापाली और दौराभाटा में खेती-किसानी का दायित्व सौंपा गया था जिसे उन्होंने अपने चचेरे भाई महादेव साव के सहयोग से बखूबी निभाया। शिवरीनारायण में ‘महादेव-पचकौड़ साव‘ के नाम से व्यापार होता था और जब गांवों में व्यापार की शुरूवात हुई तब 05 वर्ष बाद शिवरीनारायण का खाता बंद कर साजापाली-दौराभाठा में ‘महादेव-पचकौड़ साव‘ के नाम से खाता शुरू किया गया जो मालगुजारी उन्मूलन तक चलता रहा। गलत बातों का वे दबंगता से विरोध करते थे साथ ही मांगने पर उचित सलाह भी देते थे। आजादी के कुछ महिने बाद 17.10.1947 को उन्होंने स्वर्गारोहण किया। पचकौड़ साव के एक मात्र पुत्र राघव साव का जन्म चैत्र शुक्ल 2, संवत् 1972 को रात्रि 10 बजकर 33 मिनट को हुआ। उनका राशि नाम दुर्गाप्रसाद रखा गया था। परिवार की धार्मिकता का संस्कार उन्हें मिला और इसी परिवेश में परवरिश होने के कारण धार्मिकता उनके जीवन का एक अंग हो गया। उन्होंने अपने जीवन में लगभग दो घंटे पूजा अवश्य किया करते थे। चारों धाम-बद्रीनाथ, द्वारिकाधाम, रामेश्वरम् और जगन्नाथपुरी की पूरी यात्रा उन्होंने की थी। गया श्राद्ध, प्रयाग और काशी श्राद्ध करने के साथ गंगासागर और बाबाधाम की यात्रा भी उन्होंने की। जीवन भर वे सात्विक रहे- ’सादा जीवन और उच्च विचार’ को उन्होंने अपनाया।...और इलाहाबाद के महाकुंभ में एक माह का कल्पवास करने के बाद अपने भरे पूरे परिवार को शुक्रवार, दिनांक 24.11.1989 को दोपहर एक बजे 74 वर्ष जीवन का सुख भोगकर स्वर्गारोहण किया। उन्होंने मुझे रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाकर धार्मिक वृत्ति से न केवल जोड़ा बल्कि मुझे रचनात्मक लेखन की प्रेरणा दी। मुझे इस दिशा में प्रेरित करने वाले माखन वंश के अंतिम लंबरदार श्री सूरजदीन साव भी थे। सर्व प्रथम विश्व हिंदु परिषद द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में गीता के प्रसंगों पर निबंध लिखकर पुरस्कृत होकर लेखन की मैंने शुरूवात की। इस निबंध के लेखन में मुझे मेरे दादा श्री राधवप्रसाद के साथ ही श्री सूरजदीन साव का पूर्ण सहयोग मिला। वृद्ध प्रपितामह के साहित्यिक विरासत और महानदी का संस्कार पाकर मेरी लेखनी अविचल चलने लगी। 
राघव साव 

ऐसा पहली बार हुआ और गोविंदसाव के वंश में एक-एक पुत्र की परंपरा टूटी और राघवप्रसाद के चार पुत्र क्रमशः देवालाल, सेवकलाल, होलीदास और हेमलाल हुए। होलीदास तो बचपन में ही काल कवलित हो गए लेकिन शेष तीनों पुत्रों ने अपने वंश को बढ़ाने में सफल हुए। देवालाल के एक मात्र पुत्र अश्विनी कुमार और पुत्री मीना बाई हुई। सेवकलाल के दो पुत्र संजय कुमार और नरेन्द्र कुमार तथा चार पुत्री मंजुलता, अंजुलता, स्नेहलता और मधुलता हुई। हेमलाल के दो पुत्र अतीत और अमित कुमार और एक मात्र पुत्री अल्पना हुई। इस प्रकार राघवप्रसाद के तीन पुत्र और पांच पौत्र हुए और उनकी वंश परंपरा बढ़ी। राघवप्रसाद के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में देवालाल का  05. 07. 1934 को जन्म हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा शिवरीनारायण में और हाई स्कूल की शिक्षा सारंगढ़ और बिलासपुर में हुई। उच्च शिक्षा न कर पाने का उन्हें अफसोस अवश्य हुआ था लेकिन मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने घर-परिवार की जिम्मेदारी उठा लिए थे। अपने भाई-बहनों की शिक्षा दीक्षा से लेकर उनके विवाह और नौकरी लगाने तक तथा उनके बच्चों के भी विवाह आदि में पूरा सहयोग देकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। देवालाल धीर, गंभीर और सुलझे हुए व्यक्ति थे। कदाचित् उनके इसी व्यक्तित्व के कारण वे न केवल माखन वंश के बल्कि समाज और शिवरीनारायण, बेलादूला और साजापाली में अत्यंत लोकप्रिय थे। उन्होंने न जाने कितने परिवार को टूटने से बचाया और टूटे परिवार को जोड़ा है। वे अपनी पीढ़ी के एक मात्र व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी पैत्रिक वृत्ति महाजनी को अपनाया। उन्होंने शिवरीनारायण के विकास में अमूल्य योगदान दिया है। आज की पीढ़ी उनके योगदान को शायद न समझ सके। जीवन भर सत्पथ रहकर निःस्वार्थ सेवा भाव से कार्य करते हुए जीवन के अंतिम समय में उन्होंने भगवत्भजन में अपना मन लगाया... और 67 वर्ष की अवस्था में भौतिक सुख सुविधा का परित्याग कर 16. 04. 2001 को पंच तत्व में विलीन हो गये।
    
सेवकलाल ,देवलाल और हेमलाल 

राघव साव के द्वितीय पुत्र सेवकलाल ने जहां बैंकिंग सेवा में अपना जीवन सफर तय किया वहीं तृतीय पुत्र हेमलाल ने व्यापार को अपनाया जिसे उन्होंने पुत्र अतीत कुमार के सहयोग से संचालित कर रहे हैं। सेवकलाल के दोनों पुत्र संजय और नरेन्द्र कुमार टेंट हाउस के व्यापार में संलग्न हैं। देवालाल के पुत्र अश्विनी कुमार शासकीय महाविद्यालय चांपा में प्राध्यापक हैं। उन्होंने अपनी अभिरूचि के अनुसार छत्तीसगढ़ के इतिहास, पुरातत्व और परंपराओं के उपर लिखकर प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर पर ख्यराजीनामााति अर्जित किया और अपने वंश को गौरवान्वित किया है। धर्मयुग, अणुव्रत और नवनीत हिन्दी डाइजेस्ट जैसे राष्ट्रीय पत्रिका में बाल मनोविज्ञान विषय पर और कादम्बिनी, दैनिक हिन्दुस्तान में स्वतंत्र स्तम्भ लेखन किया। देश और प्रदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है। वे जांजगीर-चांपा जिले और प्रदेश के गिने चुने राष्ट्रीय लेखकों में से एक हैं। अपने क्षेत्र के उपर लिखकर अपने जन्म को सार्थक बनाने का प्रयास उन्होंने किया है। शिवरीनारायण, पीथमपुर के उपर शोध ग्रंथ लिखकर वहां के माहात्म्य को प्रकाशित कर सद्कार्य किया है। छत्तीसगढ़ के बिखरे और खंडहर होते मंदिरों और लुप्त हो रही परंपराओं पर कलम चलाकर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। छत्तीसगढ़ के भारतेन्दु कालीन गुमनाम साहित्यकारों को प्रकाश में लाने का उनका सराहनीय प्रयास है। उनके इस रचनात्मक और सार्थक लेखन के लिए विभिन्न संगठनों से सम्मानित होकर अपने वंश को गौरवान्वित करने वाले अकेले हैं। आज वे छत्तीसगढ़ राज्य केशरवानी वैश्य सभा के अध्यक्ष रहने के बाद प्रदेश सभा के संरक्षक और अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। प्रदेश के अनेक नगर सभाओं के द्वारा उन्हें ‘समाज के गौरव‘ के रूप में सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। उनकी धर्मपत्नी कल्याणी देवी भी एक स्वतंत्र लेखिका हैं और लायनेस क्लब चांपा की अध्यक्ष, नगर केशरवानी महिला सभा की अध्यक्ष और प्रदेश केशरवानी महिला सभा की कोषाध्यक्ष के अलावा अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महिला महासभा की राष्ट्रीय महामंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद सम्प्रति संरक्षक हैं। सम्प्रति वे केसरवानी वेलफेयर सोसायटी महिला शाखा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनके दो पुत्र प्रांजल कुमार कम्प्यूटर इंजीनियर आज यू. एस. ए. के टेक्सास की राजधानी आॅस्टिन में कार्यरत है। उनके दो पुत्र एकाक्ष और अक्षज अमेरिकन सिटीजन है। वहीं अंजल कुमार आद्या इंटर प्राईजेज के नाम से इलेक्ट्रानिक्स दुकान संचालित कर रहा है। उनके एक पुत्र अर्चित और एक बिटिया अर्चिका है। हेमलाल के दो पुत्रों में अतीत कुमार जहां अपने पिता जी के साथ व्यापार में संलग्न हैं वहीं अमित कुमार मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके अपने पिता जी के व्यवसाय को आगे बढ़ाने में संलग्न है। सेवकलाल के पुत्र संजय कुमार के दो पुत्री सृष्टि और साक्षी और एक पुत्र सृजन कुमार है वहीं नरेन्द्र कुमार का पियुश और प्रितुल दो सुपुत्र है। 
प्रो अश्विनी कुमार और कल्याणी देवी 

    राजीनामा बंटवारा के अनुसार राघव साव वल्द पचकौड़ साव को एक आना नौ पाई हिस्से में मौजा साजापाली, दौराभाठा, बेलादूला, बरगांव के कुल जमीन का आधा हिस्सा, चंडीपारा (पामगढ़) और नवागढ़ का ढाबा, अमोदी, झरप, भंवरेली, नवागांव, सरवानी, और परसापाली का जमीन हिस्से में मिला। इसके अलावा शिवरीनारायण के पुराना हवेली, बेलादूला, साजापाली घर का आधा हिस्सा, रायपुर के घर, बरगांव के घर तथा शिवरीनारायण के महानदी खड़ पर स्थित देवी मंदिर के बगल के कमरे का आधा हिस्सा मिला है।
इसमें साजापाली 16 आना गांव रसीद खां मालगुजार ने आत्माराम बलभद्र साव के पास रहन रखा था। बाद में 14200 रू. नगद देकर 09. 07.1923 को खरीदा गया। इस गांव की जिम्मेदारी पचकौड़ साव महादेव साव को सौंपा गया था। इसी प्रकार दौराभाठा तहसील बलौदाबाजार का 16 आना हिस्सा आत्माराम बलभद्र साव खम्हारी साव के पास रहन था। 1924 में आत्माराम बलभद्र साव के नाम पर दाखिल खारिज व कब्जा मिला। इसकी भी जिम्मेदारी पचकौड़ साव महादेव साव का दिया गया था। बेलादूला में 2 आना हिस्सा लखुर्री और शिवरीनारायण खाता से उदेराम चन्नाहू ने खेदूराम साव के पास रहन रखा था। इसी प्रकार डेरहा सतनामी का हिस्सा माखन सव के पास रहन था और जिसका 28. 03. 1901 को दखल कब्जा मिला। इस गांव की देखरेख की जिम्मेदारी साधराम रामचंद देवचरण और चमरू साव को सौंपा गया था। बरगांव का चार आना चार पाई हिस्सा चैनसिंह चन्नाहू वगैरह मालगुजार से नंदराम हरिराम के नाम पर डिग्री के एवज में नीलाम से 1928 में आत्माराम साव के नाम पर खरीदा गया। इसी प्रकार यहां का छै पाई हिस्सा मानकुंवर बेवा समारू चन्नाहू से 500 रू. में लखुर्री खाता से 13. 10. 1937 को रजिस्ट्री सुदा खरीदा गया। बरगांव की जिम्मेदारी साधराम रामचंद्र साव लखुर्री को सौंपा गया था। अपने अपने हिस्से में राघव साव के तीनों सुपुत्र क्रमशः देवालाल, सेवकलाल और हेमलाल काबिज हैं।

बेटा और बहुओं के साथ महरीन देवी 
देवालाल  मिथला देवी 


देवालाल अपने दोनों पोते के साथ  मिथला देवी 


सेवकलाल  राजकुमारी देवी  हेमलाल और उषा देवी 


हेमलाल परिवार  श्रीमती चंदा नकछेड़ प्रसाद , सारंगढ़ 


रमा श्याम प्रकाश की ५० वीं सालगिरह पर  मिथला देवी पांचवीं पीढ़ी के साथ 


चंदा और रमा के साथ कल्याणी  अश्विनी कल्याणी की शादी की २५ वीं सालगिरह 


मीना प्रमोद गुप्ता , पथरिया  बिटिया तृप्ति के साथ अश्विनी कल्याणी 


अश्विनी परिवार  अंजल की शादी में मीना प्रमोद के साथ 


तृप्ति मयंक परिवार  ई प्रांजल परिवार  अंजल परिवार 


संजय कुमार परिवार  नरेंद्र कुमार (बाबू) का परिवार 


मंजुलता अशोक , लोरमी  अंजुलता राजेश कुमार ,सारंगढ़ 


स्नेहलता का परिवार संजय-अर्चना के साथ  मधु राजकुमार परिवार ,अनूपपुर 


ई अमित कुमार परिवार  अल्पना तोषण, सारंगढ़ 


अतीत कुमार परिवार  नरेंद्र कुमार (बाबू) के जन्म दिन के अवसर पर 


अश्विनी कल्याणी ,संजय अर्चना और नरेंद्र निर्मला  नरेंद्र कुमार निर्मला देवी और पीयूष कुमार 


साजापाली के घर का बाहरी हिस्सा  साजापाली के घर का भीतरी भाग  


शिवरीनारायण की हवेली  बेलादुला का घर 


एकादशी उद्यापन  श्रीमद भागवत कथा 

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