भूमिका

 भूमिका

खेदूराम साव ,लम्बरदार 
छत्तीसगढ़ में माखन साव परिवार का नाम बहुत ही आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। इस परिवार के लोग शिवरीनारायण, कमरीद, हसुवा, टाटा और लखुर्री में रहते थे क्योंकि वहां उनकी देखरेख में खेती किसानी होती थी। शिवरीनारायण में परिवार का प्रमुख महाजनी का दुकान था। साथ ही परिवार के लंबरदार और हिस्सेदारों के परिवार यहां रहते थे। परिवार के कुछ लोग जिनमें मदनलाल तिजाऊप्रसाद, देवालाल भैरोलाल का मनिहारी दुकान, इच्छाराम नंदराम का सूत दुकान और गोपाल प्रसाद का कपड़ा दुकान खूब चलता था। आगे चलकर परिवार के अन्यान्य लोग खेती किसानी के साथ व्यापार में संलग्न हो गये। गांवों में पहले धान रखने की कोठियां थी। बाद में परिवारजनों के गांवों में रहने के कारण धान की कोठी के साथ रहने के लिए कमरों और निस्तार आदि के लिए कुंआ का निर्माण कराया गया था जिसके अवशेष आज भी गांवों में देखने को मिलता है। इस वंश के बच्चे सारंगढ़, बिलासपुर और रायपुर में पढ़ाई करते थे। उनके रहने के लिए इन स्थानों में सर्व सुविधायुक्त घर और खाना बनाने, साफ सफाई के लिए नौकर चाकर की पूरी व्यवस्था की गई थी। बच्चे पढ़कर जहां नौकरी मिला, नौकरी करते रहे और बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग आदि जगहों में घर बनाकर परिवार के साथ स्थायी रूप से रहने लगे। बाकी लोग व्यापार की सुविधा को ध्यान में रखकर शहरों में आकर रहने लगे। इस प्रकार भादा और सिल्ली परिवार के लोग जांजगीर और बिलासपुर में रहने लगे। लखुर्री के कुछ लोग लखुर्री में रहते हैं और अधिकांश चांपा और जांजगीर में व्यापार करते हुए वहां स्थायी निवास बना लिए हैं। साजापाली परिवार के लोग शिवरीनारायण, बिलासपुर और चांपा में रहते लगे हैं। हसुवा परिवार के लोग शिवरीनारायण, रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग-भिलाई में रहते हैं। टाटा परिवार के लोग सरसींवा और सारंगढ़ में रहकर व्यवसाय कर रहे हैं। परिवार के कुछ लोग रायपुर और भिलाई में रहने लगे हैं। इस प्रकार जो जहां रहने लगे वहीं अपना स्थायी निवार बना लिए हैं और उनका पैत्रिक गांवों की बड़ी बड़ी हवेलियां जर्जर होकर खंडहर में तब्दील होती जा रही है। धान तो आजकल सीधे सोसायटी में चला जाता है इसलिए धान की कोठियां खाली पड़ी है और खंडहर होती जा रही है।
आत्माराम साव ,लम्बरदार 

माखन साव परिवार वटवृक्ष की भांति खूब फैला हुआ है। परिवारजन आज भी परिवार की अधिकारिक संख्या बता पाने में असमर्थ हैं। आपसी बंटवारा हो जाने से कभी संयुक्त परिवार के रूप में जानने वाला परिवार अब बहुत छोटा ‘एकल परिवार‘ में सीमित होकर रह गया है। अधिकांश परिवारजन व्यवसाय करने और बच्चों को पढ़ाने के लिए शहरों में रहने लगे हैं। गांवों में खेती किसानी अब ठेका या अधिया में होने लगा है। गांवों में संयुक्त परिवार के रहने और सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत हवेली और घर बनवाया गया था जो आज वीरान होकर खंडहर में बदलते जा रहा है। अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार माखन साव परिवार की चैरासी गांवों में कुल 4800 एकड़ कृषि भूमि का रकबा था। 28 गांवों में घर, तालाब और धान रखने की कोठी बना हुआ था। परिवार का मुख्य व्यवसाय महाजनी और खेती किसानी था। इंकम टैक्स लगने के कारण महाजनी का खाता अलग अलग किया गया है। उसी के अनुसार गांवों की लंबरदारी भी निर्धारित की गई थी। परिवार में कोर्ट कचहरी के मामलात और खेती किसानी की व्यवस्था के लिए मुख्तियारे आम नियुक्त किये जाते रहे हैं। इनमें परिवारजनों और अन्य लोगों को भी मुख्तियार बनाये जाने के दस्तावेज मिले हैं। परिवार के बाहर के मुख्तियार परिवार के साथ वहुत अच्छे सम्बंध थे और उस परिवार के साथ रोटी बेटी का सम्बंध भी बना हुआ था। शिवरीनारायण में अधिकांश केशरवानी परिवार के बुजुर्ग माखन वंश के मुख्तियार रहे हैं।

श्याम मनोहर साव ,लम्बरदार 
शिवरीनारायण, कमरीद, हसुवा, टाटा, झुमका, लखुर्री और बेलादूला में आज भी हवेली अपने पुराने स्वरूप में हैं लेकिन अब वह भी जर्जर होकर खंडहर में बदलते जा रहा है। चूंकि शिवरीनारायण में परिवार का सदर मुख्यालय था। धामिक और सांस्कृतिक तीर्थ होने के कारण समय समय पर परिवारजन शिवरीनारायण अवश्य आते थे। यहां महिलाओं के रहने की व्यवसथा घर के भीतर और पुरूषों के सोने की व्यवस्था घर के बाहर बाड़ा में रहती थी। शिवरीनारायण में लक्ष्मण बाड़ा, सीताराम बाड़ा और बांस बाड़ा था जिसमें लक्ष्मण बाड़ा और सीताराम बड़ा आज भी है। बृहद और सम्पन्न परिवार के न चाहते हुए भी अनेक दुश्मन हो जाते हैं अतः घर को पूरी तरह से सुरक्षित बनवाया जाता था साथ ही घर में शस्त्रागार अवश्य होता था। गांवों से आवागमन के लिए बैल गाड़ी और भैंसा गाड़ी हुआ करता था। घर में घोड़ा के घुड़साल भी होता था। जलाऊ लकड़ी रखने के लिए और गाय पालने के लिए कोठा होता था। निस्तार के लिए ‘पाखाना युक्त कोला‘ होता था। लेकिन पुरूष वर्ग बाहर जाते थे और तालाब और नदियों में नहाते थे। हर साल गर्मी के जेठ-आषाढ़ में बच्चों की शादी होती थी। शिवरीनारायण में सबके बच्चों (लड़के और लड़कियों) की शादी होती थी। शादी घर के बड़े बजुर्ग तय करते थे और खर्च परिवार के समिलात खाते से होता था। सामज में सामूहिक विवाह तो अब होने लगे हैं लेकिन माखन साव परिवार में शुरू से छः सात बच्चों की शादी एक साथ होती रही है। लंबे समय तक सबकी शादी शिवरीनारायण में ही होता रहा लेकिन बाद में परिवारजन गांवों में रहने लगे तब वहीं से बच्चों की शादियां की जाने लगी। इस परिवार में दो या तीन सगी बहने ब्याहकर आई हैं जिससे परिवार में एक नये रिश्ते की शुरूवात हो गई। आज नये रिश्तों से परिवार के नाते रिश्ते गौड़ हो गये हैं। सारंगढ़, भटगांव, बेलादूला, सेंदुरस, केरा, नवागढ़, तालदेवरी, बिर्रा के अलावा मुंगेली, धमधा, छटन, कवर्धा और खैरागढ़ में ज्यादातर रिश्ते हुए हैं। अब नाती पोतियों के ब्याह भी इन्ही जगहों में होने से नित नये रिश्ते बनते जा रहे हें। आज पारिवारिक रिश्ते लगभग गौड़ हो गये हैं।
सूरजदीन साव ,लम्बरदार 

मैंने पहले ही बताया कि माखन वंश एक बृहद वट वृक्ष की तरह फैला हुआ परिवार है। परिवार में किसी के विवाह अथवा मृतक कर्म में प्रायः सभी शिवरीनारायण में एकत्रित होते थे। 12 वें दिन ‘पगबंधी‘ होता था जिसमें परिवार के बड़े बुजुर्ग के सिर में ‘पागा‘ बांधा जाता था। रिश्ते में लखुर्री परिवार के श्री रामचंद्र साव, श्री देवचरण साव और फिर श्री चमरू साव बड़े थे। उन्हीं के सिर में पागा बांधा जाता था। उनके बाद श्री सूरजदीन साव फिर श्री विद्याधर साव के सिर में पागा बंधने लगा। लेकिन अब जिस परिवार में मृत होता है उसी परिवार में पागा बंधता है। यानी अब माखन वंश संयुक्त परिवार से पूरी तरह से एकल परिवार में बंटकर रह गया है। पारिवारिक बिखराव के कारण तथा नये रिश्तों के कारण परिवारजन सुख दुख में आना जाना करने लगे हैं।

मेरी लेखन में रूचि बुजुर्गों के सानिघ्य में रहने के कारण शुरू हुआ और कुलदेव तथा भगवान शबरीनारायण के आशीर्वाद से आज भी निर्बाध चल रहा है। बुजुर्गों के सानिघ्य में मैं परिवार को अच्छे से जान सका, रिश्तों को समझा और हमारे पुराने घर में मालगुजारी के सारे दस्तावेज लकड़ी की अलमारी में रखा था जिसे समय समय पर मैंने बाबु जी को अध्ययन करते देखा करता था। बाद में मैंने भी देखना शुरू किया और तब मुझे परिवार को अच्छे से जानने-समझने का मौका मिला। बचपन में परिवारजनों के विवाह में बारात गया। दादा जी के साथ पारिवारिक जानकारी किस्से कहानियों की तरह सुना। मेरी उत्सुकता बढ़ी और फिर माखन वंश के लंबरदार श्री सूरजदीन साव से न केवल परिवार के रिश्तों को जाना समझा बल्कि मालगुजारी के बारे में भी जाना। उल्लेखनीय है कि श्री आत्माराम सूरजदीन साव की मालगुजारी और लंबरदारी में माखन वंश 08 गांव से बढ़कर 84 गांव तक बढ़ा था। तब तक महेश्वर महादेव की कृपा से परिवार भी बहुत बढ़ा और लोगों में मतभेद भी बढ़े। पारिवारिक बंटवारा कोर्ट तक पहुंच गया और बात आपसी समझौता तक पहुंच गया।

साधराम साव ,लम्बरदार लखुर्री 
लंबे समय तक केस कोर्ट में विचाराधीन रहा और अंत में आपसी समझौता के आधार पर फैसला सुरक्षित रखा गया। इसी फैसने के आधार पर सभी अपने अपने हिस्से पर काबिज हैं। एक बार तो मालगुजारी दस्तावेज को खोजते हुए मुझे एक बस्ता हाथ लगा जिसमें राजा महाराजा, जमींदार आदि से पत्राचार के कागज, शादी ब्याह के निमंत्रण पत्र और श्री माखन साव, श्री खेदूराम साव और श्री आत्माराम साव के आनरेरी बेंच मजिस्ट्रेट होने की जानकारी, अंग्रेज दरबार में प्रमुख व्यक्ति का ओहदा और बंदूक रखने का माफी लाइसेंस मिलने की जानकारी मिली। अंग्रेजों, गवर्नर आदि के द्वारा भेजे गये ग्रीटिंग पत्र, आमंत्रण पत्र, प्रशस्ति पत्र, तमगा आदि मिले। इससे मेरी रूचि और बढ़ी तब मुझे कुलदेव महेश्वरनाथ महादेव के बारे में जानकारी मिली और बिलाईगढ़-कटगी जमींदार प्रानसिंह द्वारा नवापारा गांव मंदिर की व्यवस्था के लिए मंदिर में चढ़ाने की जानकारी बाद में उनके द्वारा दी गई ‘सनद‘ मिला जिसमें उन्होंने लिखकर दिया था। अंग्रेजों के विभिन्न आयोजनों के लिए माखन वंश के लंबरदार श्री खेदूराम साव और श्री आत्माराम साव के द्वारा आर्थिक सहायता के साथ उपस्थिति के प्रमाण मिले। विभिन्न अवसरों में प्रशस्ति पत्र मिलने की जानकारी मिली। तब मैंने छत्तीसगढ़ के इतिहास का गहन अध्ययन किया तब जाना कि सोनाखान के जमींदार श्री नारायणसिंह कैसे ‘वीर‘ बने और उनके अतिश्योक्तिपूर्ण कहानी सुनी। पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित वोट के खातिर नारायण सिंह को वीर नारायण सिंह के रूप में दर्शाया गया और माखन साव को केवल सूदखोर बनिया या महाजन के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन मैंने इतिहास के अध्ययन से जो तथ्य प्राप्त किया, घर के दस्तावेज से जो जानकारी मिली उसके आधार पर माखन साव के बारे में लिखा। कैसे परिवारजनों को समेटकर रखा, परिवार में लड़के असमय काल कवलित होने से चिंतित परिवार को महेश्वरनाथ महादेव का कृपापात्र बनाया। महानदी के तटपर साव घाट का निर्माण न केवल सार्वजनिक निस्तार बल्कि बाढ़ से कटाव रोकने के लिए मजबूत दीवार का निर्माण कराया जिससे बाढ़ का संकेत मिलता था। शिवरीनारायण वास्तव में बाढ़ क्षेत्र था और अंग्रेज सरकार के द्वारा गांव को खाली करने के लिए भी आदेशित किया जा चुका था। मगर धार्मिक और सांस्कृतिक तीर्थ होने और भगवान शबरीनारायण के उपर अटूट विश्वास के कारण लोग यहां से विस्थापित नहीं हुए। लेकिन सन् 1891 में तहसील मुख्यालय शिवरीनारायण से जांजगीर स्थानान्तरित कर दिया गया था। इन तथ्यों से परिवारजनों को परिवार के मुखिया ‘श्री माखन साव‘ को जानने समझने का मौका मिलेगा। आज भी उनके लिए हमारे मन में जो श्रद्धा भाव है, उसे समझने में मदद मिलेगी। माखन साव 08 गांव के मालगुजार, शिवरीनारायण तहसील में आनरेरी बेंच मजिस्ट्रेट और बहुत ही सम्मानित व्यक्ति थे। शिवरीनारायण के तहसीलदार और उत्कृष्ट भारतेन्दुकालीन साहित्यकार ठाकुर जगमोहनसिंह ने अपनी पुस्तक ‘सज्जनाष्टक‘ में यहां के जिन आठ सज्जन व्यक्तियों का पद्यबद्ध परिचय लिखा है उसमें श्री माखन साव भी एक हैं।


आगे चलकर परिवार के द्वारा मालगुजारी गांवों में तालाब निर्माण, धर्मशाला निर्माण, मंदिर स्थापना, दान आदि के साथ शिवरीनारायण में श्री रविशंकर शुक्ल जी की प्रेरणा से मीडिल स्कूल भवन का निर्माण श्री आत्माराम साव ने अपने दादा श्री माखन साव की स्मृति में बनवाकर 6 मई सन् 1935 को समर्पित किया था। इसी प्रकार चांपा के पास सोंठी में कुष्ठ आश्रम खोलने के लिए लखुर्री के लंबरदार श्री साधराम साव ने वहां स्थित करीब एक एकड़ की भूमि में कुंआ युक्त धर्मशाला को दान कर दिया था। सारंगढ़ में खाड़ाबंध तालाब के पार में स्थित घर को सार्वजनिक धर्मशाला निर्माण के लिए दान किया गया। शिवरीनारायण के सार्वजनिक केशरवानी भवन के निर्माण के लिए कमरीद परिवार जनों ने अपने पूर्वज श्री बीजेराम साव (श्री विजय राम) के नाम से दान कर भवन निर्माण में मुक्त हस्त से आर्थिक सहयोग भी दिये हैं। यानी परिवार का एक इतिहास है जिसे मैंने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। मुझे जो तथ्य दस्तावेज में मिले, इतिहास के पन्नों में मिले उसी के आधार पर मैंने माखन वंश को तैयार किया है। आज की पीढ़ी अपने पूर्वजों और परिवारजों जान समझ सके, नाते रिश्तों को जानें यही सोंचकर उनकी तश्वीर परिवार के साथ लगाकर रोचक बनाने का प्रयास किया। माखन वंश का बृहद वंश वृक्ष भी मैंने तैयार किया है जिसे अपने चांपा के घर की दीवार में लगा रखा है। यह मेरे पित्रृऋण से उऋण होने का एक प्रयास है।

माखन वंश पत्रिका में मालगुजारी गांवों, मुख्तियारों, लंबरदारी के साथ कुलदेव महेश्वरनाथ महादेव, राजीनामा बंटवारा, कुलदेव पूजा और पितर मिलाने और नावापानी खाने के लिए पारिवारिक व्यवस्था के साथ परिवारजनों के मोबाईल नंबर देने का प्रयास किया है। इस पत्रिका के लिए परिवारजनों से भी लेख/जानकारी आमंत्रित किया गया था लेकिन प्रो. बंशीलाल, श्री अशोक कुमार और ई. प्रांजल कुमार के आलेख मिले जिसे सम्मिलित किया गया है। इस वंश के अनेक लोग सामाजिक दायित्व के विभिन्न पदों पर थे और हैं। मैंने सामाजिक दायित्व के विभिन्न अवसरों के फोटो आमंत्रित किया है। जो मेरे पास उपलब्ध हो सका उसे सम्मिलित किया गया है। केसर ज्योति के संपादक भाई श्री राज केसरवानी ने सहृदयता से अखिल भारतीय केसरवानी वैश्य महिला महासभा के महामंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष रही श्रीमती कल्याणी केशरवानी और छत्तीसगढ़ राज्य केसरवानी वैश्य सभा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मेरा साक्षात्कार लेकर केसर ज्योति में प्रकाशित किया था, उसे भी इस पत्रिका में सम्मिलित किया गया है। लखुर्री के लंबरदार श्री साधराम साव के पौत्र श्री रामप्रकाश को छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा राज्य स्तरीय ‘कृषक रत्न‘ पुरस्कार प्रदान करने पर मेरे द्वारा लिखा आलेख को भी लिया गया है। पत्रिका में परिवारजनों के फोटो को व्यवस्थानुसार परिवार अनुसार लिया गया है। इसे उपलब्धता के अनुसार प्रकाशित किया गया है। बहुतों का फोटो उपलब्ध नहीं होने के कारण प्रकाशित नहीं किया जा सका है लेकिन उपलब्ध होने पर बाद में भी सम्मिलित किया जा सकता है। माखन साव परिवार में जो मुझे अच्छी बातें दिखाई दी उसे सम्मिलित किया है। ऐसी बात नहीं है कि परिवार में अच्छी नहीं लगने वाली बातें नहीं है ? मैंने उसे जानकर भी सम्मिलित नहीं किया है। 

हमारे घर में सभी गांवों के दस्तावेज बस्ता में सहेजकर रखा हुआ था जिसे मेरे बाबुजी मुझे सौंप गये थे लेकिन मैं उसमें से कुछ ही बस्तों का उपयोग कर सका शेष सभी बस्ता और दस्तावेजों को परिवारजन बोरा में भरकर छत में फेंकवा दिये। उनके इस कृत्य से और कुछ जानकारी मिल सकती थी जो नष्ट हो गई। पत्रिका में जानकारी एकत्रित करने के लिए मुझे अनेक गांवों का भ्रमण करना पड़ा, स्वजनों, परिजनों के फोटो लेने पड़े लेकिन नौकरी से सेवानिवृत्त परिवारजनों के बायोडाटा और फोटो एकत्रित करने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बहुतों का फोटो भी नहीं मिल पाया और जानकारी भी अधूरी हो सकती है। मैंने माखन वंश के गौरव के रूप में इन्हें शामिल किया है। कुछ लोगों को अनुपलब्धता के कारण सम्मिलित नहीं किया जा सका है। परिवारजन इसे अन्यथा नहीं लेंगे। परिवार के वंश वृक्ष को बहुत बड़ा होने के कारण इसमें नहीं लिया जा सका है। 

माखन वंश के निर्माण में मेरे सुपुत्र ई. प्रांजल कुमार, अंजल कुमार और श्रीमती कल्याणी के साथ मां श्रीमती मिथला बाई ने परिवार के नाते रिश्तों को बताने में सहयोग किया। पुत्रों ने मेरे साथ गांवों तक जाकर हवेली, परिवारजनों के फोटो खींचने में सहयोग किया। हमारे पूर्वजों का उन्हें आशीर्वाद अवश्य मिलेगा। ईश्वर सबको सुखी रखें और आपस में समन्वय बना रहे। महेश्वरनाथ महादेव से मेरी यही कामना है।

शिवरीनारायण की पुरानी हवेली 


                                          

 प्रो. अश्विनी केशरवानी

‘दीपावली‘ सोमवार, 24 अक्टूबर 2022

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