माखन वंश की मालगुजारी

माखन वंश की मालगुजारी

    

हसुवा की हवेली 

छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध मालगुजार माखन साव अपने परिवार के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण परिवार के लंबरदार बने। लगभग 1800 ईसवीं में हसुवा गांव को उनके पिता मयाराम साव और चाचा द्वय मनसाराम और सरधाराम साव ने सम्मिलित रूप से खरीदा था। ज्येष्ठ होने के कारण मयाराम साव परिवार के पहले मालगुजार मुखिया और लंबरदार बने। हसुवा की हवेली 16634 वर्ग फुट में बना है। आगे चलकर नम्मू बाड़ा, जरहा बाड़ा, रामसागर कोठी और दो कोठा बनवाया गया और सबको मिलाकर कुल क्षेत्रफल 33711 वर्ग फुट है। यहां का निर्माण समय समय पर होता रहा है। लेकिन भोगहापारा (शिवरीनारायण) के मालगुजार और शबरीनारायण मंदिर के पुजारी पंडित भागीरथ भोगहा के आमंत्रण पर धीरसाव का परिवार संवत् 1840 (सन् 1783) में आसनिन से हसुवा होते हुए शिवरीनारायण आ गया। शिवरीनारायण में ही माखन साव का जन्म संवत् 1869 में हुआ। ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण उनका लालन पालन बहुत लाड़ प्यार से हुआ। उन्हें भगवान शबरीनारायण का प्रसाद स्वरूप माना गया। उन्हें यहां का पवित्र संस्कार मिला और अल्पायु में परिवार की जिम्मेदारी उन्होंने सम्हाल ली। 17 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने कमरीद के पास स्थित ठाकुरों के गांव कोड़ाभाट में नमक का व्यापार शुरू किया। इस व्यापार से प्राप्त धान को बाढ़ी देकर और महाजनी से धन और जमीन दोनों अर्जित किया। उन्होंने टाटा, झुमका, सितलपुर, बछौडीह, कमरीद म.नं  01 और लखुर्री, मौहाडीह गांव खरीद लिया। इस बीच इस परिवार में लगातार एक एक करके कई लोग गोलोकवासी हुए। इससे परिवार में निराशा फैल गई। सबकी सलाह पर उन्होंने तीर्थयात्रा की और सकुशल लौट आये और अपने पिता मयाराम साव के द्वारा प्रतिष्ठित महेश्वरनाथ महादेव का एक भव्य मंदिर महानदी के तट पर बनवाया और उनकी पूजा-अर्चना की।

महेश्वर महादेव और देवी दाई मंदिर 

इसके परिणामस्वरूप उनका परिवार बढ़ने लगा। आगे चलकर महेश्वरनाथ महादेव की ख्याति ‘वंशवृद्धि‘ प्रदाता के रूप में हो गयी। उन्होंने न केवल मंदिर बनवाया बल्कि अनेक स्थानों में कुंआ, तालाब और धर्मशालाओं का निर्माण कराया। उनके पुत्रों, पौत्रों और प्रपौत्रों ने भी अपने सभी मालगुजारी गांवों में कुंआ, तालाब और धर्मशालाओं का निर्माण कराया और पुण्य के भागी बने। माखन साव के पुत्र खेदूराम साव को अपने मालगुजारी गांवों हसुवा, टाटा और लखुर्री में सन् 1856-58 में जब पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ा था, तालाब निर्माण कराया। उनके इस सद्कार्य के लिए अंग्रेज सरकार के द्वारा एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। शिवरीनारायण तहसील सन् 1861 में बना तब पंडित यदुनाथ भोगहा और माखन साव को यहां का बेंच मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया था। माखन साव के बाद उनके पुत्र श्री खेदूराम साव और पौत्र श्री आत्माराम साव भी यहां के आनरेरी बेंच मजिस्ट्रेट नियुक्त किये गये थे।

    80 वर्ष तक सद्कार्य करने के बाद फाल्गुन सुदि 2, संवत् 1949 तद्नुसार शनिवार, 06 मार्च सन् 1892 को माखन साव गोलोकवासी हुए। उनके मृत्योपरांत माखन साव के नाम से आठ गांवों क्रमशः हसुवा, टाटा, सितलपुर, बछौडीह, झुमका, कमरीद, म.नं. 01 मौहाडीह और लखुर्री की मालगुजारी उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री खेदूराम साव के नाम स्थानान्तरित हो गयी। हसुवा को गोपाल साव, टाटा, सितलपुर, बछौडीह और झुमका को सुखरू, अंडोल, गनपत, गोविंद और गजाधर साव साजापाली और दौराभाठा, कमरीद को खेदूराम और बुल्लूराम साव, मौहाडीह और लखुर्री का सिरदार और ठुठवा साव देखरेख कर रहे थे। 

  

लखुर्री की हवेली  लखुर्री की हवेली 
 माखन साव के बाद मालगुजारी ‘खेदूराम गनपत बलभद्र साव‘ सन् 1893 से चलने लगी। कार्तिक शुक्ल 13, संवत् 1970 तद्नुसार दिनांक 22 नवंबर सन् 1913 को खेदूराम साव की मृत्यु हो गयी तब मालगुजारी ‘आत्माराम गनपत बलभद्र साव‘ चलने लगी। गनपत साव को कोई पुत्र नहीं था अतः उन्होंने अपने भतीजा श्री धन्नाराम को गोद ले लिया। सन् 1922 में गनपत साव की मृत्यु हो गयी तब मालगुजारी ‘आत्माराम बलभद्र साव‘ के नाम से होने लगा। दिनांक 13 अप्रेल 1926 को बलभद्र साव की मृत्यु हो गयी तब मालगुजारी आत्माराम-सूरजदीन साव के नाम से चलने लगी। 
खेदूराम साव को प्रशस्ति पत्र 

     मालगुजारी के सफल संचालन और आयकर से बचने के लिए कुछ नए फर्म बनाये गए जो निम्नानुसार है:- 

1. आत्माराम-बलभद्र साव, शिवरीनारायण

2. महादेव-पचकौड़ साव, शिवरीनारायण (05 वर्ष बाद इस खाता को बंद कर दिया गया)

3. पचकौड़ साव -महादेवसाव, साजापाली

4. नंदराम-हरिराम साव, टाटा

5. बहोरन साव, झुमका (आगे चलकर उनके एक मात्र पुत्र बलराम साव लंबरदार हुए)

6. चंद्रिका-गिरीचंद्र साव, हसुवा

7. बिजेराम-कुंदनलाल, कमरीद (06 वर्ष के बाद बिजेराम साव की मृत्यु हो गयी तब कमरीद का खाता       ‘हीरालाल कुंदनलाल‘ के नाम से चलने लगा)

8. साहेबलाल-मदनलाल, खपरीडीह

9. साधराम-रामचंद्र साव, लखुर्री

10. झड़ीराम-मोहनलाल साव, भादा

11. तुमागम प्रसाद-सत्यनारायण बेलहा     

बेलादुला की हवेली 

13.04.1926 को बलभद्रसाव की मृत्यु होने पर और उनके ज्येष्ठ पुत्र के अस्वस्थ रहने के कारण उनके द्वितीय पुत्र श्री चंद्रिका प्रसाद का नाम हसुवा की मालगुजारी खाता में और तृतीय पुत्र श्री सूरजदीन साव का नाम शिवरीनारायण के खाता में जोड़ा गया। इस प्रकार हसुवा का खाता ‘चंद्रिका प्रसाद-गिरीचंद्र साव‘ और शिवरीनारायण का खाता ‘आत्माराम-सूरजदीन साव‘ के नाम से चलने लगा। माखन वंश के 84 गांव की मालगुजारी में सर्वाधिक योगदान ‘आत्माराम सूरजदीन साव‘, शिवरीनारायण; ‘साधराम-रामचंद्र साव‘, लखुर्री और ‘चंद्रिका प्रसाद-गिरीचंद्र  साव‘ हसुवा का रहा है। श्री आत्माराम साव की मृत्यु पौष शुक्ल 4, संवत् 2003 (तद्नुसार 12.12.1946) को हो गया जिससे शिवरीनारायण की मालगुजारी ‘श्याममनोहर-सूरजदीन साव‘ के नाम से चलने लगी। इसी प्रकार श्री श्याममनोहर साव की मृत्यु जेठ शुक्ल 11, संवत् 2022 को हो गया तब से पारिवारिक बंटवारा होने तक ‘तुमागम प्रसाद-सूरजदीन साव‘ के नाम चला। इसमें महत्वपूर्ण तथ्य है- श्री सूरजदीन साव का तीन पीढ़ी तक मालगुजारी करना। पहले ‘आत्माराम-सूरजदीन साव‘, फिर ‘श्याममनोहर-सूरजदीन साव‘ और अंत में ‘तुमागम प्रसाद-सूरजदीन साव‘। सूरजदीन साव जीवन के अंत तक वे निश्छल, धीर-गंभीर और ईमानदार रहे। इसी प्रकार परिवार में श्री साधराम साव का स्थान था। उन्होंने भी परिवार की निःस्वार्थ सेवा की। लखुर्री के मालगुजारी फर्म से लगभग 25 गांव, टाटा-झुमका के मालगुजारी फर्म से लगभग 10 गांव खरीदने का उल्लेख है, शेष गांव शिवरीनारायण और हसुवा खाता से खरीदा गया।

शिवरीनारायण की हवेली 

माखन वंश के 17 गांवों क्रमशः हसुवा, लखुर्री, गोविंदा, बेलादूला (म.नं. 2), मौहाडीह, कोन्हापाट, कमरीद (म.नं. 01 एवं 02), केवा, भादा, टाटा, तौलीडीह, साजापाली, दौराभाठा, खपरीडीह, सितलपुर, बछौडीह, झुमका में 16 आना; सिल्ली में 12 आना और बेलहा में 08 आना मालगुजारी था। इस वंश के 32 मालगुजारी गांवों क्रमशः शिवरीनारायण में 07, हसुवा में 07, लखुर्री में 05, मौहाडीह में 02, बम्हनीडीह में 02, साजापाली में 02, बेलादूला में 03, बिलासपुर में 02, जांजगीर में 02, नवागढ़ में 02 के अलावा कमरीद, भादा, बेलहा, कांसा, गोधना, सिल्ली, मुड़पार, डोंगाकोहरौद, बरगांव, तुस्मा, चांपा, मुक्ता, टाटा, झुमका, पड़रीपाली, पुरगांव, मानाकोनी, खपरीडीह, भुसड़ा, रायपुर और नावापारा में मकान तथा भटगांव, नवागढ़, में एक-एक चंडीपारा-पामगढ़ में ढाबा और रहने के लिए मकान था।

खेदूराम साव , लम्बरदार  आत्माराम साव  श्याममनोहर साव 

सूरजदीन साव  साधराम साव 

No comments:

Post a Comment